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________________ भिप-सिद्धि उत्तान टाटा को भी प्रकार सकुचित करके नितीन चार स्नेहवन्ति देवे। फिर तीन शिप की। नेह की मात्रा में बनते जाना चाहिए । फिर दिन चति देव | [ अनुवासन मे २४ घण्टे मे है, या अनुमति तीन या पांचवे दिन दी - अपने वरिवार तथा दिन लगातार देवर १५० है । ] की मात्रा- (Introduction of nozzle) विषय में गोनिमार्ग में नेत्र से ना करें। मूत्र मार्ग में दो अंगुल । साडे सतारी के एल प्रष्टि परे । यह अगुवा प्रमाण रोगी की नए । मात्रा (Dosage ) -यों में उत्तर वस्ति मे मध्यम मात्रा एक प्रच (ए) वरतनी चाहिए और बारिकाओं में दो कर्प ( आधा पानी चाहिए। पुरुष में मुत्रमार्ग से स्नेह देना हो तो उसकी यानी चाहिए। कई बार १ प्रकुंच या ४ तोले तक भी दिया है। पोपट व नदिन वस्तिके नेत्र मी में से प्रभार से कम स्वादको माके { ****** के यतिका निर्देश ( Indications ). - मूत्रमार्ग तथा मून यो योनि और गर्भाशय के रोगों में लियो उत्तर न देना de niet af ander Urethral irrigation ar को या तीन व्यापारी anarhe मे ही है। के 1 ** * * * 1** 4 - *** होया करती नाहिए | * 1 प्रशन उद्देश्य हो और उनमे क्वाथ वा की मात्रा एक प्रमुत बड़ी आयु की स्त्रियो की स्त्रियों में पुरुष के बराबर अर्थात् लिए लेनी चाहिए । ३-४ उत्तर पनि कुदेनी चाहिए। अनुवासन ● *ney, toilet, *****, ***, die 27192. ***** ****, mind, यू 5 बहन से P F वीरपु * I L + ffere
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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