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________________ ( १३ ) उपदेश देता है। दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या के रूप मे उठना, बैठना, खाना, पीना, स्नान, भोजन, शयन, ब्रह्मचर्य, विवाह, गृहस्थजीवन आदि के सम्बन्ध में विशद रूप से संग्रह किया हुआ आयुर्वेद के ग्रन्थों मे उपलब्ध होता है, जिसके अनुष्ठान और पालन का नियम बडा ही सरल सुवोध और सर्वजनगन्य है । स्वस्थवृत सम्बन्धी इन नियमों का प्रचार इस देश के समाज में ऐसा घर कर लिया है कि कुछ वृद्धों के उपदेश और उनके अनुभवों का आश्रय मात्र लेने से ही विषय का बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है। आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान वैयक्तिक स्वस्थवृत की दृष्टि से उतना चढा-बढा नहीं है प्रत्युत वह इस अङ्ग से अपूर्ण है। वह सामूहिक दृष्टि से एक जनपद या समाज के स्वास्थ का विचार करता है। आयुर्वेद का स्वस्थवृत आज भी एक स्वतन्त्र या विशिष्ट स्थान रखता है। राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक यदि व्यक्तिगत चर्याओं या आचार का पालन करे तो समग्र राष्ट्र सुखी और समृद्धवान् हो सकता है। इन दोनों प्राचीन और आर्वाचीन स्वास्थ्य के उपदेशों की तुलना की जाय तो आधुनिक वर्णन अधिक विज्ञान-सम्मत प्रतीत होते है परन्तु इसमे भी दोपों का अभाव नहीं है, ऐसा नहीं कह सकते । केवल सामूहिक दृष्टि से स्वस्थ वृतों का विचार एकाङ्गी है और तब तक पूर्ण नही हो सकता जब तक कि व्यक्तिवादी आयुर्वेदीय स्वास्थ-सद्वृत्त से उसको पूर्ण न बनाया जाय । यद्यपि वाद्यदृष्टि से इस प्रकार का कथन सुहावना प्रतीत नहीं होता है तथापि परिणाम की दृष्टि से विचार करते हुये यह मत अमृत सदृश है। जिस प्रकार औद्योगिक धन्धों के साथ ही कुटी-व्यवसायों का भी समर्थन किया जाता है उसी प्रकार Hygiene. anp Publie Health के आधुनिक विषय के साथ आयुर्वेदीय स्वस्थवृत्तों का ( Personal Hygiene ) का उपदेश भी जनता के कल्याणार्थ हितावह है। यत्तदने विपमिव परिणामेऽमृतोपमम् | तत्सुख सात्त्विकं विद्धि आत्मबुद्धिप्रसादजम् ॥ (गीता) आयुर्वेद का स्वस्थवृत केवल वैयक्तिक स्वास्थरक्षण के उपायों तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह देश, जनपद, मेला और महामारी प्रभृति बडे-बडे जन-समाजों की रक्षा मे भी समर्थ है। कई वार अत्यावश्यक अवस्थाओं मे जहाँ पूरा जनपद किसी बडे विकार से ग्रस्त हो जाय तो उसको सम्भालने का भी उपदेश वैद्यक ग्रन्थों में मिलता है। विभिन्न प्रकृति, आहार, देह, बल, सात्म्य तथा आयु वाले मनुष्यों के रहने पर भी एक ही समय मे जनपद का नाश हो सकता है।' इसे जनपदोध्वंस (Epidemics ) कहते है। इसके
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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