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________________ भिपकर्म-सिद्धि १०४ सूअर की वसा को एक मे मिलाकर पिलाना । ४ दूध दुहने वाले वर्त्तन मे पहले से ही घी और चीनी छोडकर ऊपर दूब दुहे और धारोष्ण पिये । ५. जो, वेर, कुल्थी इनके क्वाथ मे पिप्पली, दूध, दही, सुरा और आठवां भाग वी मिलाकर पीना । ६. दही को मलाई को गुड के साथ खाना । ७ स्नेहो में के मानलवण मिलाकर सेवन । ८ तैल और मुरा मण्ड का सेवन । ९ मूअर रम मे घृत और लवण मिलाकर सेवन । स्नेह व्यापद - ( Complications ) अतियोग - ( Overdosage ) अतिमात्रा मे स्नेह के प्रयुक्त होने से निम्नलिखित बाधायें उत्पन्न होती है । जैसे भोजन में द्वेप, मुख मे स्राव, अरुचि, तन्द्रा, प्रवाहिका, गुदा मे दाह, गुरुता, मल की अप्रवृत्ति और पाण्डुता प्रभृति लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । अयोग - ( Underdosage ) हीन या अल्प मात्रा में प्रयुक्त होने मे निम्नलिखित दोप उत्पन्न हो जाते हैं । जैसे पुरीप का गाठदार होना, अन्न का कठिनाई से पाक, छाती मे जलन, दुर्बलता, दुर्वर्णता, रूक्षता और डकारो का आना प्रभृति लक्षण अस्निग्ध व्यक्ति मे पैदा होते है । --- सम्यक योग - ( Required dosage ) ठीक मात्रा में प्रयुक्त होने से व्यक्ति में सुस्निग्धता आ जाती है, त्वचा और मेद गिथिल हो जाता है, अग्नि दीप्त हो जाती हैं, गात्र मृदु हो जाते हैं, अग हल्के हो जाते है, तथा गुदा से चिकनी चीज का निकलना प्रभृति लक्षण सम्यक् मात्रा में प्रयुक्त हुए स्नेह से होते है । प्रतिकार ( Treatment ) -- योग और अयोग का विचार करते हुए, अतिस्निग्ध व्यक्ति का रूक्षण, साँवा, कोदो, तक्र, पिण्याक, सत्तू, तक्रारिष्ट, त्रिफला और गोमूत्र के द्वारा करना चाहिए । यदि व्यक्ति अस्निग्ध हो तो उसमे पुन स्नेह का प्रयोग करके उसका स्नेहन करना चाहिये । स्नेह - विभ्रम-- ( Allergy due to protien content in crude fat ) कई वार स्नेह के विभ्रम से अति तृपा अधिक प्यास लगना शुरू हो जाता है | स्नेह के पीने के पश्चात् यदि उसे अधिक प्यास लगे तो गर्म जल पिलाना चाहिये । फिर भी शान्ति न मिले तो गर्म जल पिलाकर चमन करा दे । शीत द्रव्यों का सिर के ऊपर लेप करे । जल मे अवगाहन करावे । अस्ने व्यक्ति - (contra indication of fats | बहुत से ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें मेद का पाचन ( digestion of fat ) हो ही नही पाता । बहुत से ऐसे स्थूल व्यक्ति मिलते है जिनमे वसा या स्नेह उनकी स्थूलता ( obesity ) को बढाता है जिससे उन्हें लाभ के स्थान पर हानि होती है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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