SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) यदि कदाचित् मुनिकोटि के विचारकों तथा ऋषि-कोटि के सिद्धांतों मे विरोध दिखलाई पडे तो ऋपियों से उनके पूर्व वाले आचायों का मत अधिकाधिक प्रामाण्य ( Oldest Version) होता है । परन्तु सुनियों मे परवर्ती आनेवाले सुनियो का वचन अधिकाधिक प्रामाण्य ( Latest Version ) होता है । अर्थात् ऋषिवाक्य जितने ही अधिक प्राचीन हों उतने ही अधिक प्रामाणिक माने जाते है, परन्तु सुनियों या आधुनिक विचारकों के सम्बन्ध मे वे जितने ही नवीन हों उतना ही उनका अधिक मूल्य है' - श्रुतिस्मृतिपुराणाना विरोधो यत्र दृश्यते । पूर्व पूर्व बलीयस्त्व तत्र ज्ञेय मनीपिभि ॥ ( स्मृतिसमुच्चय ) x x X यथोत्तरं मुनीना प्रामाण्यम् । आयुर्वेदीय स्वस्थवृत्त की विशेषता आधुनिक स्वास्थ्य या चिकित्साविज्ञान का स्वरूप उन्नीसवी शताब्दी के औद्योगिक क्रान्ति के नव जागरण का परिणामी है । जिससे यह एक कुटी व्यवसाय के स्वरूप का न होकर औद्योगिक रूप का है । इसमे जो कुछ भी गुण हो एक दोष तो अवश्य है कि वह एक ईकाई ( यूनिट ) का ध्यान न रखते हुए समग्र की चिन्ता करता है । इसमें व्यक्ति का विशेष मूल्य न ढेकर पूरे समाज के ही कल्याण की भावना निहित है । व्यक्तियों के समुदाय का ही नाम समाज है । यदि पूरे समाज की सेवा की जाय तो सभी व्यक्तियों की सेवा रवयमेव हो जायेगी । इसके विपरीत व्यक्ति विशेष की सेवा की जाय तो स के वृहत्तर आयोजन से समग्र समाज का भी कल्याण स्वयमेव हो सकता है । ढोनों मतों में आपातत' कोई विरोध नही होते हुए भी दोनों का लक्ष्य समान होते हुए भी साधन की सामग्री मे विभेट प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है । t उदाहरण के लिये एक कपडे का व्यवसाय ले । कपडे दो प्रकार के मिलते है, एक छोटे-छोटे चरखे करघे के बुने खादी के कपड़े, दूसरे बडे-बडे औद्योगिक पुतली घरों से निर्मित, दोनों का अंतिम उद्देश्य एक ही है — पूरे जन-समुदाय को वस्त्रों से पूर्ण करना । बडे उद्योगों की दृष्टि, समूह की ओर होती है वह एक बढे समुदाय के लिये वस्त्र बनाता है किसी व्यक्ति विशेष का ध्यान उसके निर्माण में नही रहता, तथापि एक इकाई की आवश्यकताये पूरी हो जाती है । कुटी व्यवसाय का बना वस्त्र एक-एक इकाई का ध्यान रखता हुआ सम्पूर्ण इकाई की आवश्यकताओं का पूरण करते हुए अपने महत्तर लक्ष्य समग्र समाज की सेवा की ओर अग्रसर होता है । इनमें कौन-सा अच्छा है और कौन-सा
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy