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________________ हद भिपकर्म-सिद्धि ऋतुओ मे भी अच्छ स्नेह का प्रयोग नही करना चाहिये । नाति शीतोष्ण नु या काल मे इस विधि से स्नेहपान कराना उत्तम है | 'केवल शुद्ध रूप में किसी स्नेह द्रव्य का पान अन्यता है किसी प्रकार की विचारणा ( परहेज ) की आवश्यकता नहीं रहती है। की कल्पना वटी ही श्रेष्ठ है- क्योकि इसके द्वारा स्नेहन गली नीति हो जाना है | अच्छ स्नेह अद्भुत शक्तिवाला और प्रभूतवीर्यणाली होता है । फर उस असंस्कृत स्नेह का प्रयोग शास्त्र सम्मत है । यदि शुद्ध घृत ही पिलाना लक्ष्य हो तो दोपानुसार पित्तज विकारों में केवल, वातिक विकारों में मेंधानमक के साथ ओर श्लैष्मिक विकारो में व्योप और बार मिलाकर पिलाना चाहिये ।' शोप की चिकित्सा में अधुना प्रचलित मत्स्ययकृत-वगाय का प्रयोग वृण के लिये किया जाता है यह अच्छ स्नेहपान का ही एक उदाहरण है। स्नेही के द्वारा विटामिन ए, डी तथा डी २, को पूर्ति होती है और शरीर की रक्षण शक्ति चढती है | संस्कारित स्नेह ( medicated ) -- नेहन को विधियों में बरते जर्ने वाले धी एव तैलो का याविधि विभिन्न औषधियो और वों के संयोग में अग्नि पर पका कर ( देने वैद्यक - परिभाषा प्रदीप ) संस्कृत-स्नेह बनाये जाते है । इनका व्यक्ति और उसके रोग की अवस्था के अनुसार प्रयोग किया जाता है । पाक विधि से तैयार तेल तीन प्रकार के होते है-मृदु, मध्य तथा सर-पाक । इनमे मृदुपाक स्नेहो का प्रयोग पीने और साने में, मध्य-पाक स्नेहो वा उपयोग नस्य तथा अभ्यग में तथा खरपाक स्नेहो का उपयोग वस्ति एव कर्णपूरण के लिये होता है । स्नेहन-स्नेहन की विधियाँ ( modes of administration of lubrications ) भक्ष्यादि अन्न के साथ, वस्ति से, नस्य से, अभ्यग (मालिग) से, अजन से, गण्डूप (कुल्ली भरना) के रूप में, अथवा सिर-कान और आँसो के तर्पण के द्वारा विविध भाँति से ( चौबीस प्रकार के विभिन्न मार्गों से ) गरीर का एकदैशिक या सार्वत्रिक ( local or general ) स्नेहन किया जाता है । सक्षेप मे स्नेहन का अर्थ oral administration, अनुवासन से rectal administration, उत्तर वस्ति यानी urethral or vaginal administration, गिरोवस्ति एव अभ्यग से cutaneous administration, नस्य से nasal administration तथा कर्णपूरण से aural administrations प्रभृति मार्ग स्नेहो के अदर मे पहुँचाने के विधान से है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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