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________________ द्वितीय खण्ड : प्रथम अध्याय ६७ होते है। वनस्पति घृत पूर्णतया शत-प्रतिशत संतृप्त saturated होता है उममे अमतृप्त वसा का भाग होता ही नहीं इस लिये भी वहण के कार्यों मे व्यवहुत नहीं हो सकता है, जो प्राकृतिक स्नेहो का एक प्रधान कार्य है। अतएव वैद्यकीय विधि से सिद्ध स्नेहो मे अर्थात् किसी तैल या घृत के निर्माण में वनस्पति घृतो को अनुपयोगिता स्वसिद्ध है। खनिजतेल-स्थावर स्नेहो मे कुछ ऐसे भी तेल है जिनकी उत्पत्ति पेडपांधी से न होकर सदानो से होती है जैसे-किरोसिन, पेट्रोल आदि । पुन इन मेलो ने रामायनिक विधियो के द्वारा विभिन्न प्रकार के स्नेह बनते है जैसे वेमेलीन, लेनोलिन, तारपीन का तेल, लिक्विडपैराफीन आदि। इन तेलो को खनिज तेल नाम से एक स्वन यसज्ञा देना अधिक समीचीन प्रतीत होता है। इनके प्रयोग बाह्य ( external ) और मीमित स्थानो (hmated spaces) पर ही होता है। लिक्विउपराफोन कान और नाक मे लगाने और मुस से मेवन मे भी व्यवहत होता है । लिकिडपेराफीन--यह ऐमा विचित्र स्नेह है जिसका सेवन करने से मुख से लेकर गुदा पर्यन्त सम्पूर्ण अन्नवह स्रोत का स्नेहन हो जाता है । इस स्नेहन की उपमा मगीन की आयलिङ्ग से दी जा सकती है। साथ ही इस स्नेह का गोपण अप माना में भी आयो से नहीं होता, न किसी पाचक रस का ही प्रभाव इसके ऊपर पटता है और न स्वय ही किसी पाचन रस को विकत करता है. फलत अविकृत भाव से गुदा से बाहर निकल जाता है । अन्य तैल या घ नो मे यह विशेषता नही पाई जाती । इन सभी द्रव्यो का ग्रहण तैल के वर्ग मे करने का उद्देश्य प्राचीन आचार्यों के शब्दो मे तद गणता अर्थात् निष्पत्ति और साम्य ही है। स्नेहन क्रिया के वास्तविक उद्देश्यो को ध्यान में रखते हुए खनिज तैलो का अतर्भाव स्नेहन वर्ग मे संभव नहीं है, जैसा कि आगे के वर्णनो से स्पष्ट होगा। अच्छ स्नेह-सस्कार के विना भी घ त या तैल का पान कराया जा मकता है । विशुद्ध तथा विना किसी आपधि के योग से पाक किये ही जो स्नेह पिलाया जाता है उसे अच्छ स्नेह कहते हैं। जैसे घृत को दूध मे डालकर या काड लिवर आयल को दूध में डालकर पिलाना । इसका प्रयोग व्यक्ति की सहनशक्ति और सात्म्य और असात्म्य का विचार करते हुए कराना चाहिये । स्नेह जिन्हे सात्म्य हो ऐसे व्यक्तियो मे तथा जो क्लेश-सह ( कष्ट को बर्दाश्त कर सकने वाले ) व्यक्ति हो, इसका प्रयोग करना चाहिये। अग्नि, शीत, अति उष्ण ७ भि० सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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