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________________ भिपकर्म-सिद्धि ४ यह अन्य स्नेहो की अपेक्षा हल्का या लघु होता है। घृत से गुरु ( भारी ) तैल, तैल से गुरु वसा, वसा से गुरु मज्जा होती है। इस वर्ग के स्नेहो का वाह्य तथा आभ्यतर दोनो प्रकार के उपयोग होते है । घृत के साथ ही साथ नवनीत ( दूध या दही के विलोने से उत्पन्न मवचन । का विचार कर लेना आवश्यक है। वास्तव मे इन्ही का त्पान्तर घृत है। इसी घृत का ओपधि-प्रयोग अधिक होता है। घृत का मंरक्षण अधिक काल तक हो सकता है मक्खन का उतने काल तक नही । अस्तु घ त ही प्रधान है। तैल-स्थावर सृष्टि से उत्पन्न स्नेहो ( vegetable source ) मे तैल आते हैं। तैल गब्द की व्युत्पत्ति है 'तिलोद्भव तैलम्' तिल से उत्पन्न वस्तु । यही कारण है कि तिल-तैल को ही सर्वोत्तम तेल माना गया है । इतना ही नही, प्राचीन ग्रन्थो में प्राय जितने सस्कारित तैलो ( medicated oils ) के पाठ मिलते है (कुछ इने गिने तैलो को छोड कर ) उनके निर्माण में तिल तेल का ही प्रयोग हुआ है। जैने नारायण तेल, मापतैल, वला तेल आदि । इसी प्रकार किमी तेल के पाठ मे यदि किसी विशेष तैल का कथन न हुआ हो तो तिल-तैल का ही व्यवहार अपेक्षित रहता है । बलवर्द्धन और स्नेहन की दृष्टि से सर्वदा तिल तेल का व्यवहार करें। इस वलवर्धन का हेतु आधुनिक विज्ञान के गब्दो में विटामिन ए और डी की विगेपता के कारण है। अन्य तैलो की अपेक्षा ये विटामिन्स इसमे अधिक मात्रा मे रहते हैं। ___ तैल द्रव्यभेद से अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे एरण्ड तल, मर्पप तेल, वरें का तेल और महुए का तैल आदि । इस प्रकार वानस्पतिक द्रव्यो के भेद से सत्तर प्रकार के विभिन्न तैलो का उदाहरण सुश्रुत सहिता मे पाया जाता है । और भी अनेक प्रकार के हो सकते है। इनमे अधिकतर तैल फल या वीजो की मज्जा से तैयार होते है । कुछ सीधे पौधे की छाल या लकडी से भी निकाले जाते है जैसे चीर, देवदारु, अगुरु, चदन, गीगम आदि । इन्हे essential oils कहते है। इनके अतिरिक्त एक चौथा वर्ग मोम ( vax ) का है ये monohydric alcohol के easters होते है । स्थावर मृष्टि से निकले तैलो मे कुछ का वाह्य उपयोग, कुछ का बाह्य तथा आभ्यन्तर दोनो प्रकार से उपयोग होता है। फिर भी तैलो का मुख से न प्रयोग करके बाहरी अभ्यङ्ग के रूप में ही उपयोग अधिक लाभप्रद माना गया है। उक्ति भी मिलती है 'घृत से तैल दसगुने लाभप्रद है खाने से नही, मालिश से।'
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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