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________________ कफ वात वात कफ - - ७४ भिपकर्म-सिद्धि हीन मध्य अधिक वृद्ध वृद्धतर वृद्धतम वात पित्त वात कफ पित्त पित्त कफ पित्त कफ वात पित्त कफ पित्त वात वात पित्त कफ ममवद्ध व कुल इसी प्रकार काम, गोक, भय, नाघात भादि विविध कारणो मे उत्पन्न होने पर भी आगन्तुकता की सामान्यता के कारण भवो का एक ही आगन्तुक के भीतर समावेश हो जाता है । इस प्रकार भेदोपभेद होते हुए भी ज्वर को सख्या एक ही स्थिर अर्थात् आठ ही रहो । संख्या-सम्प्राप्ति कथन का यही प्रयोजन है। विकल्प-संप्राप्ति-समवेत दोपो की अशाग कल्पना को विकल्प कहते है । इम अंगाग कल्पना को समझने के लिये दोप-गुणो का समझना आवश्यक है क्योकि गुणो के ऊपर अगागकल्पना की जाती है । रूमः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः। (वातगुणा ) सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु । (पित्तगुणा.) गुरुशीनमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः। (श्लेष्मगुणाः) इन गुणसमूहो के एक, दो, तीन या ममस्त अगो से वातादि के प्रकोप का निश्चय करना ही अगाग-कल्पना है। कितने प्रकोपक गुणो से दोप के कितने अग का कोप हुआ है-इस प्रकार का विकल्प, अगागकल्पना है । द्रव्य एवं उनके रस्मो में दोपो के ही समान गुण रहते है। बत प्रकोपक द्रव्य में जितने प्रकोपक अंग रहते हैं उनसे ही दोप का प्रकोप होता है। कपायरस एवं कलाय-रीक्ष्य, शैत्य, वैशद्य एवं लाघवादि गुणो से वात को सव अंशो में वढाता है। अति या वृद्धतम ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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