SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • कमठ और मरुभूति। [११ और मरुभृति आनन्दसे रह रहे थे कि अचानक राजा अरविदने अपने शत्रु राना वज़वीरनपर चढ़ाई कर दी थी। दलबल सहित दोनों राजा रणक्षेत्रमे पाए और घोर सग्राम होने लगा था। मरभूति भी राजाके साथ रणक्षेत्रमे गया था । इधर कमठकी बन आई । वह निरंकुश हो प्रनाको तरह २ के कष्ट देने लगा। इसी बीचमें उसकी कुदृष्टि मरुभृतिकी स्त्री सती विसुन्दरी पर पड़ गई थी और वह कामातुर हो उसको पानेके उपाय करने लगा था, यह पाठकगण ऊपर पढ़ चुके है । अस्तुः कलहसने जब देखा कि कमठ विसुन्दरी विना विह्वल होरहा है: तब वह भी न्यायमार्गसे फिसल पडा! कमतिके फंदेमें पडकर वह धोखेसे कमठके बीमार होनेका बहाना बताकर विसुन्दरीको उसके पास लिवा लाया । विचारी अनान वनिता इसके प्रपचको क्या जाने ? वह सरल स्वभावसे वहां चली आई। कमठको अब भी लज्जा न आई । पापीने उसके शीलको भंग किया और दुर्गतिमें अपना वास बनाया। इतनेमे राजा अरविंद अपने शत्रुको परास्त करके सानन्द अपने नगरको लौटे । नगरमे पहुंचनेपर उनको कमठकी सब काली करतूतें मालूम पड़ गई । सचमुच कमठके पापोंका घडा भर गया था-बस, उसके फूटनेकी ही देरी थी। वह भी दिन आ गया। राजाने उसे देशनिकालेका दंड देना निश्चित कर लिया ! सरलस्वाभावी मरुभूतिने भाईके प्रेमसे विह्वल होकर एकवार उसे क्षमा करनेके लिए भी कहा; पर राजाने अनीति मार्गको रोकनेके लिए कमठको दण्ड देना ही निश्चित रक्खा ! । । ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy