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________________ १२] । भगवान पार्श्वनाथ । राज आज्ञाके अनुसार कमठका काला मुंह करके गधेपर “चढ़ाया गया और वह देशसे निकाल दिया गया। कुशीलवान “कमठ महा दुःखी हुआ पर उसे अपनी करनीका फल मिल गया। “याप किसकी रियायत करता है ? बिलखता हुआ वह 'भूताचल पर्वतके पास पहुचा। वहां तापस लोगोंका आश्रम था, हठयोगमें लीन वे लोग अधोमुख लटककर, धुंआ पान करके, ऐसी ही क्रियाओसे कायक्लेश सहन कर रहे थे । कमठने उनके पास जाकर दीक्षा ग्रहण कर ली और वह भी अपनी कायाको तपाने लगा। इधर विचारे मरुभूतिको अपने ज्येष्ठ भ्राताकी इस दुर्दशापर -बहुत दुःख हुआ और सहसा वह उसको भुला न सका । जब उसे यह मालूम हुआ कि कमठ अमुक तापसोंके निकट तपश्चरण तप रहा है, तब उसने उनके निकट जाना आवश्यक समझा। राजाने कमठके खल स्वभावके कारण उसके पास जानेके लिए मरुभूतिको मना भी किया परन्तु भाईके मोहसे प्रेरा वह वहां पहुच ही गया । कमठको देखते ही उसका भ्रातृप्रेम उमड़ आया ! वह चट उसके पैरोंपर गिर पडा और उससे हरतरहसे क्षमायाचना करने लगा। इस सरलताका कमठके वक्र हृदयपर उल्टा ही प्रभाव पड़ा । वह क्रोधमें कापने लगा और क्रूर कोपके आवेशमें उसने एक शिला उठाकर मरुभूतिके सिरमें दे मारी। मरुभूतिके लिये वह काफी थी। आर्तध्यानने मरुभूतिको आ घेरा। उसके प्राणपखेरू उस नश्वर शरीरको छोड चल बसे । वह अन्त समय खोटे परिणामोंसे मरकर सल्लकी वनमें वज्रघोष नामक वनहाथी हआ । परिमामोंकी वक्रताके कारण ही उसे पशुयोनिमे जन्म लेना पड़ा।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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