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________________ २] भगवान पार्श्वनाथ । पा सकेंगे । इसलिए इसे असार न समझिये ! इसमें सार है और वह वेशक यही है कि मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थीका सावन भली भांति करले ! अभी आप पहलेके तीनों पुरुषाअॅका उपार्जन तो अच्छीतरह कर लीजिये ! फिर भले ही मोक्षके उद्यममे लगिये ! संसारसे डरिये नहीं-डरनेका काम नहीं-कर्तव्यको पहिचानिये और उसमेंके सारको गृहण कीजिये : बस प्रिय ! अभी अपने इस विचारको जरा रहने दीजिए। विश्व०-हां प्रिये : नेरा कहना तो ठीक है, परन्तु देख, इस गरीरका कुछ भरोसा नहीं ! यह बिजलीकी तरह, पानीके बुदबुदेके समान नष्ट होनेवाला है। आयुर्म न जाने का पूर्ण होनावे ! फिर यहां तो यमके दूत यह सफेद बाल आही गए हैं । तिमपर देखो, जैसे तुम कहती हो वैसे ही सही, हमने पहलेके तीन पुरुषार्थीका साधन प्राय. कर ही लिया है। ब्रह्मचर्याश्रममें रहकर विद्याध्ययन करते किचित् धर्मोपार्जन भी कर लिया और गृहस्थाश्रममें तुम सरीखी ज्ञानवान प्रियतमाको पाकर उसका भी पूरा लाभ उठा लिया है। अपने कृपालु महाराज राजा अरविड़की उपासे मंत्रिपद पर रहने हुए अर्थ सचय करनेमें भी भाग्य अपने साथ रहा है और फिर कमठ और मरुभूति युवा होही चुके-उनका विवाह भी हो चुका-अवतो बम मोलमार्गको सावन करना ही शेष रहा : अनु०-ठीक है-ठीक है-अब देरी चाहेकी। पूरे बाबानी वन गये हो ! अबतो गृहस्थाश्रममें कुछ करना घरना ही नहीं रहा ! काठको करुगा और मनमुनिको विसुन्दरी दिलादी : वस चलो छुट्टी हुई ! एक सफेद बाल भी आगया-मानो मौतनका
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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