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________________ [ ७५ ] कथा तो बिल्कुल पार्श्वनाथजीके पूर्वभववर्णनके ढंगकी है। उसमें भी वरभावकी मुख्यता है। यही हाल प्रद्युम्न सूरिकी समगदित्य फथाका है। जिसमें राजकुमार गुणसेन और ब्राह्मण अग्निशमन्के पारम्परिक विद्वेपका खाता दिग्दर्शन कराया गया है। बौद्धोके 'धम्मपद में (२९१) भी एक कथा इसी जन्मजन्मांतरमें वैरभावकी द्योतक है। इसी प्रकारकी एक कथा 'कथाकोष मे दो ब्राह्मण भाइयोकी दी हुई है। जिप्तमे एक भाईने लोभके वशीभूत हो दूसरे भाईके प्राण लेनेकी ठानी थी। आखिर पाच भवोंतक यह वैर चलता रहा था । सारांशतः इस ढंगकी कथायें भारतीय साहित्यमें बहुतायतसे मिलती है। परंतु हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि मरुभूति और कमठ जैसी पार्श्वकथासे सुन्दर और अनुपम कथा शायद अन्यत्र नहीं है । इसके लिए हम 'पार्वाभ्युदय काव्य' के टीकाकार ये गिराट पंडिताचार्यके इस श्लोकको उपस्थित किये विना नहीं रहेंगे: 'श्री पाश्चात्साधुतः साधुः कमठात्खलतः खलः । पाभ्युदयतः काव्यं न च कचिदपीष्यते ॥ १७॥" ___ अर्थात-'श्री पार्श्वनाथसे बढ़कर कोई साधु, कमठसे बढ़कर कोई दुष्ट और पार्थाभ्युदयसे बढ़कर कोई काव्य नही दिखलाई देता है।' निष्पक्ष विहानके लिये इसमें कुछ भी ‘अतिशयोक्ति नहीं है । यहांपर स्थान और अवसर नहीं है कि हम पाश्चोभ्युदय जैसे अनुपम साहित्यग्रंथोंका रसास्वादन अपने पाठकोंको करा सकें। १-कथाकोष, पृ० ३१-लाइफ एण्ड स्टोरीज आफै पार्श्वनाथ, भू० पृ. १३॥
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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