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________________ [ 19.8] शास्त्र भी स्वीकार करते है, परन्तु उनका कथन है कि भगवान्ने एक मासका योग साधन किया था और श्रावन सुदी ७ को ३६ मुनीश्वरोंके साथ मुक्तिलाभ किया था । कल्पसूत्र में उन्हें श्रावण शुक्ला को ८३ व्यक्तियों सहित निर्वाणपद पाते लिखा है । इस प्रकार दोनों आम्नायके शास्त्रो में भगवान् पाश्वंकी जीवनी में परस्पर भेद है । श्वेताम्बरोंके अर्वाचीन ग्रंथों, जैसे भावदेवसूरिके चरित में जो पूर्वभव वर्णन है, वह संभवतः दिगम्बर शास्त्रोंसे लिया गया है क्योकि उसमें कुछ विशेष अन्तर नहीं है और वह वर्णन उनके प्राचीन ग्रन्थोमें नहीं मिलता है । तिसपर भावदेवरि जो दिगंबरानायके अनुपार दश गणधर बतलाते है, वह भी इसी आधारका सूचक है | परन्तु इसको निर्णयात्मक रूपसे स्वीकार करना जरा कठिन है । किन्तु अनुमान खे० कथनको दिगम्बर शास्त्रोंका ऋणी बतलाता है। यह भी ध्यान रहे कि भावदेवसूरि आदिके पाचरित दिगम्बरों के पार्श्वचरित आदिसे उपरातकी रचना है । अस्तु; भगवान पार्श्वनाथजीके पूर्वभव वर्णनमें जिस प्रकार मरुभूति और कमठके भवसे परस्पर दो जीवोंमें दशमें भवतक शत्रुता चली आई बतलाई गई है, वह जीवोंके कषायभावोकी तीव्रता और उसके कटुकफलकी द्योतक है और भारतीय साहित्य में ऐसी अन्य कथायें । "भारतीय साहित्यमें ऐसे ही अन्य उल्लेख । भी मिलते हैं । चित्त और सम्भूतकी कथा इसी तरह दो जीवोंका जन्मान्तरतक एक दूसरेका सहायक प्रकट करती है ।' सनत्कुमारकी १ - त्रह्मदत्तकथा - वाइना जर्नल ऑफ ओरियन्टल स्टडीज, भा० ५ व ६
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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