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________________ भगवान् पार्श्वनाथ । इस व्याख्याका समर्थन अब तकके उपलव्ध जैन पुरातत्वसे भी होता है । इस समय भगवान पार्श्वनाथजीकी संभवतः सर्वप्राचीन मूर्तियां जैन सम्राट् खारवेल महामेघवाहन (ईसासे पूर्वरय शताब्दि) द्वारा निर्भित खंडगिरि-उदयगिरिकी गुफाओंमें मिलती हैं और यह नग्नवेपमें हैं। इससे स्पष्ट है कि आनसे इक्कीससौ वर्ष पहले भी भगवान पार्श्वनाथनी नमवेषमें ही पूजे जाते थे। इस समय दिगम्बरश्वेतांबर प्रभेद भी जैन संघमें नहीं हुये थे। इसके बाद कुशानकाल (Indo-Scythian Period)की मथुरावाली मूर्तियोंमें भी भगवान पार्श्वकी मूर्तियां नग्नवेषमें मिली हैं। आश्चर्य यह है कि इनमेंसे एक श्वेताम्बर आयागपटमें भगवान पार्श्वनाथकी पद्मासन मूर्ति नग्न ही हैं। इसमें कान्ह श्रमण एक खंड वस्त्र ( अंगोछे ) को हाथकी कलाई पर लटका कर नग्नताको छुगाते हुये प्रगट किये गये हैं। वैसे वह संपूर्णतः नग्नवेषमें हैं। श्वेताम्बर संप्रदायके साधुओंकी तरह उनके पास अभ्यन्तर और वहिरवस्त्र नहीं हैं और न उस तरहके एकवस्त्रधारी साधु ही हैं, जैसे कि श्वे. संप्रदायमें माने जाते हैं। श्वे ० :संप्रदायके अनुसार खंडवस्त्रधारी तीर्थकर भगवान एक प्राचीन चित्र में लंगोटी लगाये दिखाये गये हैं। इस अवस्थामें यह कान्हश्रमण पूर्ण श्वेताम्बर साधुकी कोटिमें नहीं आते हैं। उनका स्वरूप भट्टारक रत्ननन्दि कृत 'भद्रबाहु चरित'में बताये हुए 'अर्घफालक' (अर्धवस्त्र)वाले जैन साधुओंसे ठीक मिलता है। भट्टारक रत्ननन्दिने श्रुतकेवली भद्रबाहुनीके समयमें शिथि१-जैन नत्र (S. B. E.) भाग १ पृ० ७१-७२ । २-जू जैनिसमस प्लेट २०८ । ३-भगवान महावीर पृ० २२७१ ४ जनहितषी भाग १३ पृ० २६६॥
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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