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________________ N ३७४ ] भगवान पार्श्वनाथ । __ इसप्रकार निर्वाण उत्सव मनाकर देवगण सुरलोकको चले गये थे। किन्हीं शास्त्रकारोंका मत है कि देवोंने भगवान्के निर्वाणस्थानपर मणिमई स्तूप बना दिया था । इसतरह भगवान पार्श्वनाथजी परमपदको प्राप्त होगये थे। एक सामान्य हाथीका जीव आत्मोन्नति करते२ परमोच्चदशाको प्राप्त होगया! यह धर्मकी महिमाका फल है । नियमित इद्रियनिग्रह और सत्य अध्यवसाय वडेसे बडे कार्यकी पूर्ति पाड़ देता है। कितनी भी छोटी दशाका जीव उपेक्षणीय नहीं है। वह भी अपने आत्मबल अथवा सदप्रयत्नों द्वारा सब कुछ कर सक्ता है। नीच दशाके प्राणियोंको साहस दिलानेवाला भगवान्का पवित्र जीवन सर्व सुखकारी है । उसका अध्ययन और मनन भला किसको आनन्दका कर्ता न होगा ? __ भगवान् पार्श्वनाथका निर्वाण अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् महावीरजीके निर्वाणकालसे ढाईसौ वर्ष पहले हुआ, शास्त्रोमें बतलाया गया है । और भगवान महावीरजीका जन्मकाल आजकल ईसवीसनसे ५९९ वर्ष पहले माना जाता है। इस अपेक्षा भगवान् पार्श्वनाथका जन्मकाल ईसवीसनसे ८४९ वर्ष पूर्व प्रमाणित होता है और चूंकि उनकी अवस्था सौ वर्षकी थी; इसलिये उनका निर्वाणसमय ईसासे पूर्व ७४९ वर्ष ठीक बैठता है । किन्तु कोई २ महागय उनचा जन्म समय ईसासे पहले ८१७ वर्षमे मानते है । परन्तु हमने विरोप रीतिमे भगवान महावीरका निर्वाणकाल ईसासे १-श्री भावदेवमग्नि ऐमा उल्लेख अपने पार्श्वनाथचग्नि में किया है। २-उत्तर पुगण पृ० ६०७ । ३-भगवान् महावीर पृ० २१३ और जनमत्र (S BE.) भाग • भूमिका । ४-लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पाश्वनाथ, प्रस्तावन [पृ. ८ नोट २ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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