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________________ धर्मोपदेशका प्रभाव। [३०३ न्तु इनके बल हिसाबादकी पुष्टि करना अनुचित क्रिया है। इसी कारण इन विधर्मियोंको 'तत्वार्थरानवार्तिक' में प्राणिवधमें पापवंधका कारण नहीं है', इस मान्यतावाला बतलाया है ।' (न हि प्राणिवधः पापहेतुर्धर्मसाधनत्वमापतुर्महति ॥ १२ ॥ १८1) इस प्रकार कात्यायनके समयमें भी भगवान पार्श्वनाथके धर्मका प्रभाव कार्यकारी था, यह स्पष्ट है । उनके उपदेशसे वातावरण क्षुभित होगया था इसमें संशय नही और यह विदित ही है कि उनकी शिष्यपरम्परा म० बुद्धके समान विद्यमान थी, जैसे कि हम देखेंगे। उसी समयके एक अन्य मतप्रवर्तक अजित केशकम्बलि भी भगवान पार्श्वनाथके धर्मोपदेशके प्रभावसे अछूते नहीं बचे थे; यह उनके सिद्धान्तोसे स्पष्ट है। वह वैदिक क्रियाकाण्डके कट्टर विरोधी थे और पुनर्जन्म सिद्धान्तको अस्वीकार करते थे। यज्ञ, बलिदान, श्राद्ध आदिको वह अनावश्यक बतलाते थे। कहते थे कि यदि मृतक पुरुषोंको भोजन पहुंचाना संभव है तो फिर परदेश गये हुये व्यक्तिको भी उसी तरह भोजन पहुंच जाना चाहिए, परन्तु यह होता नहीं, इसलिए श्राद्ध आदि क्रियाकाण्ड वृथा हैं। साथ ही वह इंद्रियनिग्रह और ध्यानको भी आवश्यक नहीं मानता था। वर्तमानको छोड़कर भविष्यसुखकी आशा करनेपर वह विश्वास नहीं करता था । लोकको वह पृथ्वी, जल, अग्नि और वायुका समुदाय मानता था और आत्माको पुद्गलका कीमियाई ढंगका परिणाम बतलाता था । इन चारों वस्तुओंके विघटते ही आत्मा भी विघट जाता है, यह वह कहता था। इसीलिये वह जीवात्मा और शरीरको एक १-राजवार्तिक पृ० २९४ । २-प्री० बुद्धि० इन्डि० फिला० पृ० २८९ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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