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________________ भगवानका धर्मोपदेश ! [ २८३ स्थदशामें रहकर वह एक आदर्श गृहस्थ होता है, उसी तरह गृहत्यागकी इस अवस्था में वह परम तपस्वी होता है । तपका महत्व अकथनीय है, वह हरहालत में उपादेय है । प्रॉ० जेम्स नामक एक अमेरिकन तत्वज्ञानी इस तपका महत्व इसप्रकार लिखने हैं- 'वैराकी भावना और देहदमन उपयोगी है। जिसतरह बीमा कम्पनी में थोड़ार रुपया जमा करते रहने से अन्त में वह रुपया उपयोगी हुए विना नहीं रहता, उसी प्रकार देहदमनके लिये की हुई तपस्यायें भी आत्मामें ऐसा बल उत्पन्न कर देती हैं कि क्रमक्रमसे वह आत्मा जिनपदको प्राप्त किये बिना नहीं रहता । " सचमुच एकदम न उच्चकोटिका संयम और तपका ही पालन किया जापक्ता है और न एकदम ज्ञान या कल्याणकी ही प्राप्ति होसक्त है । उसमें धोरे २ ही गति होती है और वैसे२ ही ज्ञान और कल्याण भी प्राप्त होता है । शुरू में यह मार्ग नागवार मालूम होता है; किन्तु जहां तनिक उस मार्ग में गाते हुई कि बड़े कठिन जचनेवाले नियम भी चिल्कुल सुगम दृष्टि पड़ने लगते हैं । इम तरह पर पार्श्वनाथजीका धर्मोपदेश था - यह किसी भेदभाव या पक्षपातको लिये हुये नहीं था । प्रत्येक प्राणी हर परिस्थितिमे अपना आत्मकल्याण इसकी आराधनासे कर सक्ता है । भीरु और कमजोर आत्माओको वीर और बलवान बनानेवाला यह मार्ग था । क्षात्रेय शिरोमणि इक्ष्वाकुकुलकेतु काश्यपप्रभू - महावीर पार्श्वद्वारा प्रतिपादित हुआ यह धर्म सर्वथा वीर आत्माओ द्वारा हो अपनाया ही जाता रहा है; परन्तु नीच और भीरु चोर - डाकू जैसे पापी भी इसकी शरण में आकर अपना आत्मकल्याण कर सके थे। भगवानके धर्ममार्गका द्वार केवल ६
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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