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________________ [२७] बद्ध थी। जैन शास्त्रों में उसकी अलग २ श्लोक संख्या दी हुई है।' अतः इससे यह संभव है कि उस समय जन श्रुत ही 'श्लोक साहित्य के नामसे परिचित हो। शायद इसमें भाषा विषयव आपत्ति हो, क्योंकि जैनश्रुत अर्द्ध मागधी भाषामय बनाया गया है । किंतु अर्धमागधीका उल्लेख भगवान महावीरजीके श्रुतज्ञानके सम्बन्धमें है और उसकी अर्धमागधी भाषा मागघदेश अपेक्षा ही बताई गई है। इस दशामें यह नहीं कहा जासक्ता कि भगवान् ऋषभदेव द्वारा प्रतिपादित श्रुतज्ञान किस भाषामें ग्रन्थबद्ध था ? बहुत संभव है कि वह प्राचीन संस्कृतसे मिलती जुलती भाषामें हो । भगवान ऋषभदेव द्वारा एक संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ रचे जाने का उल्लेख मिलता ही है। इस प्रकार उपनिषदोंसे भी तत्कालीन जैनधर्मके अस्तित्वका पता चलता है। भारतीय वैयाकरणोंमें शाकटायन बहु प्रसिद्ध और बहु प्राचीन हैं। इन्होंने अपने व्याकरणमें जैनधर्मका शाकटायनकी साक्षी। उल्लेख किया है। बल्कि यह त्रयं नैन थे, यह बात प्रॉ० गुस्टव आपटने अपने "शाकटायन व्याकरण" (मद्रास सन् १८९३)की भूमिकामे अच्छी तरह सिद्ध की है।* वह लिखते हैं, "पाणनिने अपने गकरणमें शाकटायनका बहुत जगह वर्णन किया है। पातंजलिने भी अपने १-जैनसिद्धात भास्कर भा० १ किरण १ पृ० ५६-५७ । २-'मागध्यावतिका प्राच्या शौरसैन्यर्धमागधी वाहीकी दक्षिणात्या च भाषा सप्त प्रकीर्तिताः । चर्चासमाघान पृ. ३९-४० देखो। . ३-सक्षिप्त जैन इतिहास भा० १ पृ० १३ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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