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________________ भगवानका दीक्षाग्रहण और तपश्चरण। [ २११ रणवासमें जब यह समाचार पहुंचे तो इनकी माता एकदम विह्वल बन गई! मां की ममता एक साथ ही उमड़ पड़ी। 'हाय ! पुत्र नयनोके तारे मुझे छोड़कर कहां जाते हो' ऐसे ही अनेक रीतिसे विलाप करने लगी। राजा विश्वसेन भी खिन्नचित्त होगये! परन्तु 'प्रबुद्ध भगवानने इनको आश्वासन बंधाया, माताको बड़े ही मधुर शब्दोमें समझाया । उन्हें जगतके विनाशीक पदार्थोका स्वरूप सुझाया और सांसारिक सम्बन्धोकी निस्सारता जतलाई । प्रभुके उपदेशको सुनकर-हितमित पूर्ण बचनोंको ग्रहण करके रानी ब्रह्मदत्ताका हृदय शांत हुआ। वह जान गई कि उनके महाभाग्यवान पुत्र का जन्म ही इमी हेतु हुआ है और वे इस अवस्थामें अपनेको धन्य मानने लगीं। माता-पिताको समुचित रीतिसे समझा बुझा और ढाढर बंधाकर भगवान् इन्द्रकी लाई हुई विमला नामक पालकीमें बैठकर वनकी ओर प्रस्थान कर गये। पहले नरलोकके भूमिगोचरी और विद्याधर राजाओंने क्रमसे सात२ पैढ़ तक उस पालकीको उठाया और फिर समस्त देवसंघ उसको उठाकर ले चला ! इस दिव्य अवसरपर आकाश देवदुंदुभीके बजनेसे घनघोर झकारसे भर गया, देव कन्यायें अनेक प्रकारसे नृत्य करने लगी और चारो ओरसे भगवान के ऊपर पुष्पवृष्टि होने लगी। आखिर भगवान् निकटके 'अश्वत्थ' नामक वनमें पहुंचे। यहापर इन्द्रका इशारा पाकर सब ही लोग शांत होगये । भगवान् पालकीसे उतर आये । शत्रु १-श्री सक्लकीर्ति, पार्श्वचरित सर्ग १६ श्लोक ११०...और पार्श्वपुराण पृ० ११९ । २-पार्श्वपुराण पृ० ११९-पार्श्वचरित पृ० ३८८ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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