SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१०] भगवान पार्श्वनाथ । चट सर्व ही देव देवांगनाओं सहित बनारस नगरमे आया और , भगवानका अनेक प्रकारसे जयगान करने लगा। उपरांत सब देवोंने मिलकर भगवान का अभिषेक किया और उन्हें दिव्य वस्त्राभूपोंसे अलकृत बनाया. जिनको धारण करके वे ऐसे ही जान पड़ने लगे कि मानों मोक्षरूपी कन्याको वरनेके लिये साक्षात् दुल्हा ही हों ! फिर देवेन्द्रने भगवानसे निम्नप्रकार प्रार्थना की; यही आचार्य कहते हैं 'अमर्यादवतारोऽयं पारौथैकफलस्तव । कि पुनखिदिवादन्यभोगातिशयहेतवः ॥ निर्वेदस्तेन देवायं फलेन प्रतिमन्यताम् । समुन्मील्यास्त्वया चैताः सतामंतारदृष्टयः ।। 'हे भगवन् ! देवलोकसे जो आपका अवतार हुआ है, उसका फल पर हतका सम्पादन करना है। इसलिये स्वर्गसे अन्य जितने भर भी भोग हैं वे स्वर्गके भोगोंसे अधिक आपको अच्छे नहीं लग सक्त । दूसरों का हित सम्पादन करनेवाले आप, विषय भोगोंमें नहीं फंप सक्ते । इमलिये हे भगवन् । आपको जो वैराग्य हुआ है उसे सफल बनाइये, दिगम्बरी दीक्षा धारण कीजिये और केवलज्ञान पाकर उपदेश दे भव्यनीवोंके अन्तरग नेत्रोंको खोल दीजिये। (श्री पार्श्वनाथचरित्र ४० ३८१-३८२) इन्द्रने अपने डम निवेदनको पूर्ण करते हुये भगवानको अपने हाथा सहारा दे दिया। भगवान्ने इन्द्र के हाथको ग्रहण करके चट निहापन छोड़ दिया ? वहां देर ही किस बातकी थी-वैराग्य तो पहले ही उनको वहामे उट चलनेको प्रेरणा कर रहा था। भगचान तो उधर तप धारण करनेका साधन करने लगे और उघर
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy