SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागवंशजोंका परिचय। [१९७० अर्जुनवृक्षपरका पांच फणवाला नागपति 'अजि' (Az1) जातिके राजाका द्योतक प्रतीत होता है । इसीका अपभ्रंशरूप 'अहि' है, जो नागका पर्यायवाची शब्द है । अगाड़ी क्षीरवनका जो उल्लेख है वह क्षीरसागर अर्थात् कैस्पियन समुद्रके तटवर्ती भूमिका द्योतका है। कैस्पियन समुद्रको पहले 'शिरवनका समुद्र' कहते थे, जो क्षीरवनसे सदृशता रखता है। यहांका मर्कट देव मस्सगटै (Massagatae) जातिका अधिपति होना चाहिये; क्योंकि यह जाति कैस्पियन समुद्रके किनारे पूर्वकी ओर बसती थी। तथापि मर्कट और मस्सगटै नाममें सदृशता भी है। साथ ही यह भी दृष्टव्य है कि प्रद्युम्न पाताल लोकमें चल रहा है और कालगुफासे अगाडी उसका सात प्रदेशोंको लांघकर भारत पहुंचना लिखा है । अतएव यह सात प्रदेश पातालके सात भागोका ही द्योतक है । इसलिये यहांकी बसनेवाली उक्त जातियोंके लोग ही उसे मिले होंगे। इनको देव योनिका मानना उचित नहीं है, यह पद्मपुराणके कथनसे स्पष्ट है। अस्तु, मर्कटसे मिलकर अगाड़ी प्रद्युम्न कंदबकमुखी बादड़ीमें पहुंचे थे वहांका देव नाग शायद कास्पी जातिक हो। कापौतसर (Lake Uluminh) सभवतः कंदवक बावड़ी हो। यह कास्पी लोग बड़े बलवान थे। इनमें सत्तर वर्षसे अधिक वयके वृद्धोको जंगलमें छोड़कर भूखो मारनेके नियमका उल्लेख स्ट्रेवो करता है। जैनशास्त्रोंमें मनुष्यके लिये ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमोंसे गुजरकर सन्यास आश्रममें पहुंचना आवश्यक बतलाया है। १-पूर्व० पृ. ३७ । २-पूर्व० पृ० २३८ । ३-पूर्व० भाग १ पृ० ४६१ । पूर्व० भाग २ प० २४५ ॥ १-इन्डि० हिस्टा. वारटर्लो भाग २ पृ० ३३-३४।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy