SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६] भगवान पार्श्वनाथ । फिर वह पातालमुखी वावड़ीमे पहुंचा था, वहांपर उसे नारद मिले थे और भारत लिवा ले गये थे। विनया पर्वतको हम उत्तर ध्रुवमे पहले बता चुके है। अस्तु, वहासे चलकर पहले बराहद्वीप अर्थात् यूरोपका आना ठीक है । वराहविल वराहद्वीपका रूपान्तर ही है । कालगुफामें राक्षसदेव बतलाया है सो यह गुफा अफ्रीका भ मिश्रदेशमें होना चाहिये, क्योकि राक्षसोंका निवास हम वहीं पाते हैं और यूरोपके नीचे यह आता भी है। तिसपर यहांक लिवासी त्रिगलोडेट्स (Triglodytes) गुफाओं में रहते थे। इस कारण इसका गुफारूपमें उल्लेख होना उचित ही था। कालगुफासे विद्याधरको मुक्त करके प्रद्युम्नका नागकुमारके भवनमें जाना लिखा है सो यहांसे उनका नागलोक अथवा पातालमें पहुंचना ही समझ पड़ता है । सहस्रवक्त्र संभवत सु अथवा किडेटिप्स (Kiderites) जातिके लोगोंका परिचायक है, जो नागलोग या पातालके एक सिरेपर बसते थे। और नाग शब्द 'बिग-नु' ( Hung.nu) शब्दका विगड़ा रूप बतलाया गया है, जो हूण लोगोका प्राचीन माम था। सुनातिकी भी गणना हूणोंमे है। इसलिये इनका उपरोक्त प्रकार नाग बतलाना ठीक है। अगाड़ी वृक्षोंका उल्लेख है सो पातालमें काश्यपसे इनकी उत्पत्ति भी बतलाई गई है। कैथ वृक्ष वाले देवसे भाव शायद कुर्द अथवा कार्डकी ( Carduchi ). जातिके अधिपतिसे हो जो वहां निकटमें वसती थी। इसी तरह १ उनगपुगण पृ. ५४५-५४७ । २ एशियाटिक रिसर्चेज भाग १ पृ. ५६। ३. इन्डि. हिस्टॉ० कार्टी भाग १ पृ. ४५६ । ४, पूर्व. भाग २ पृ० ३६। ५. पूर्व० भाग १ पृ. ४५७-४५८ । ६-पूर्व० भाग २ पृ. २४३ । ७-पूर्व पृ. ३६।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy