SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागवंशजोंका परिचय | [ १६९ देखना चाहिए कि राक्षसद्वीप अथवा लंका और पाताललंका कहांपर थे ? आजकलकी मानी हुई लंका (Ceylon ) तो यह हो नहीं सक्ती; क्योंकि भारत से प्राचीन लंकातक पहुंचने में कितने ही द्वीप पड़ते थे । जब रावण सीताको हरकर लिये जारहा था तो बीच समुद्र में रत्नजी विद्याधर ने उसका मुकाबिला परास्त होकर कम्पूद्वीपमे जा गिरा था ।" अंतर द्वीपों में से एक बताया गया है। द्वीप न होकर द्वीप है । तिसपर प्राचीन रत्नद्वीप और सिंहलद्वीपके नामसे हुआ त्रिकूटाचल पर्वत भी कहीं दिखाई नहीं किया था और वह और फिर उसे अनेक मौजूदा लका एक अतर कथाओ में इसका उल्लेख मिलता है और इसमें पड़ता है । इसलिये यह राक्षस वशियो के निवास स्थान जो सन्ध्याकार आदि बताये गये हैं, उनमें, का रत्नद्वीप ही होगा, यह उचित प्रतीत होता है । इस अपेक्षासे राक्षसोके इन आसपास के स्थानोंको छोड़कर कही दूर अंतरदेशमें लंका और पाताललंका होना चाहिये । 3 हिन्दू पुराणोंमें शङ्खद्वीपमें राक्षसों और म्लेच्छोंका निवास बतलाया है और अन्ततः राक्षसोंकी अपेक्षा ही उनने उस स्थानका नाम 'राक्षस स्थान' रख दिया है । हिन्दू शास्त्रोमें यह राक्षस लोग भयानक देव बतलाये गये हैं ।" परंतु वात वास्तवमें यूं नहीं है। यह मनुष्य विद्याधर ही थे । हिन्दू शास्त्रकारोने इनका उल्लेख भयानक राक्षसों और म्लेच्छोके रूपमें केवल पारस्परिक स्पर्द्धासे ही १ - जैन पद्मपुराण पृ० ५५६ । २ - कनिंघम, एनशियन्ट जागराफी ऑफ इन्डिया पृ० ६३७-६३८ । ३ - ऐशियाटिक ग्सिचेंज भाग ३ पृ० ०० । ४ - पूर्व० पृ० १८५ । ५- पूर्व० पृ० १०० ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy