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________________ १६८] भगवान पार्श्वनाथ । शक्तिहीन हुये सो गरुडेन्द्रको रामचन्द्रने याद किया। उसने सिंहवाहन और गरुड वाहन नामक देव भेजे, जिनके प्रतापसे सुग्रीव भामण्डलका नागपाश दूर हुआ । गरुड़के पखोकी पवन क्षीरसागरके जलको क्षोभरूप करने लगी सो वह नाग वहासे विलीन होगए । इन्द्र नीलमणिकी प्रभासे युक्त रावण उद्धत रूपसे संग्राम करने लगा, विद्या माधने लगा और फिर आखिर मृत्युको प्राप्त हुआ था । लक्ष्मणने कुवरके राजा बालखिल्यकी पुत्री कल्याणमालासे यहीं विवाह किया था और फिर लवण ममुद्र लाघकर अयोध्या यहुचे थे । इस तरह श्रीपद्मपुराणमे यह कथन है । अब इस कथनके आधारसे हमे पातालपुरका पता लगाना सुगम होजाता है । उपरोक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि भारतसे दक्षिण पश्चिमकी ओर लका थी और लका पहचनेके पहले पाताललका पड़ती थी, क्योंकि पाताल-लका ही रावणको दिग्विजयके लिए निकलते समय पहले आई थी। फिर पाताल-लकासे खन्दूषणने राम-लक्ष्मणपर जो दडकवनमें आक्रमण किया था, सो उसकी खबर रावणको नहीं हुई थी, क्योंकि पाताल-लंकासे भारत आते हुये वीचमें लंका नहीं पड़ती थी-वह उससे ऊपर रह जाती थी यह प्रगट होता है। किंतु हनुमानजीको लंका जाते हुये मार्गमें पाताललका नहीं पड़ी थी, इसका यही कारण हो सकता है कि वे दूसरे मार्गसे गये थे। यही वात राम-लक्ष्मणके आक्रमणकी समझना चाहिये । वहा मी पाताल लकाका उल्लेख नहीं मिलता है, किंतु यहा यह सभव है कि वे पाताल-लका तक पहुच ही न पाये हों और हंसद्वीपमें ग्णभूमि रचकर बैठ गए हों, जो पाताल-लंकाके इतर भागमें हो। इस विषयमें निश्चयरूपसे जाननेके लिये हमें
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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