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________________ नागवंशजोंका परिचय! [१५९ मनुष्य रहते थे; क्योकि वहांपर उजड़े हुये नगरोंके खण्डहर और शिल्पनिपुणताकी अनूठी मूर्तियां भी मिली हैं। कालदोषसे वहांके निवासियोका पता आजकल अभीतक नहीं चला है; किन्तु हिन्दू 'पुराणोके वर्णनसे यह प्रकट होता है कि वहांके निवासी बर्फकी अधिकतासे एक समयमें नीचेकी ओर यूरोप और मध्य एशिया आदिकी ओर हटते आये थे। पदार्थ विज्ञानके इतिहाससे भी यह पता चलता है कि एक जमानेमें बर्फ की अधिक प्रधानता होगई थी और उस 'शीतकाल में संसारके निवासियोंमें हलचल मची थी। इस तरह जैनशास्त्रोके कथनकी एक तरहसे पुष्टि ही होती है; क्योंकि वे मूलमें विद्याधरोका राज्य विजयाध पर बतलाते हैं और उपरान्तमें उनको तमाम यूरोप, अफरोका और मध्य एशियामें फैल गया निर्दिष्ट करते हैं, जैसे कि हम जरा अगाडी देखेंगे। मध्यएशिया. तुर्किस्तान, और तातार देशके निवासी अपनेको जो एक काश्यप नामक पुरुषका वंशज बतलाते है; वह भी जैन मान्यताका सम'र्थन करता है, क्योकि भगवान ऋषभदेवका गोत्र काश्यप था और उनसे याचना करनेपर ही विद्याधर वंशके आदि पुरुष नमि-विनमिको राज्य मिला था। इन देशोंके निवासी असुर, दैत्य, नाग आदि विद्याधर वंशज थे, यह हम ऊपर देख ही आये हैं, जिनका अस्तित्व वैदिक कालसे लेकर पौराणिक समय तक बरावर मिलता है। । यहां तकके कथनसे यद्यपि विजया और आर्यखंडके संबंधमें १-'वीर' भाग २ अंक १०-११ । २-प्री-हिस्टॉरिक इन्डिया प्र० '४३ । ३-पद्मपुराण पृ० ५०-१२५ । ४-इन्डियन हिस्टारीकल क्वारटली भाग २ पृ० २८ । ५-पूर्वभाग १ पृ० १३२ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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