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________________ नागवंशजोंका परिचय ! [१५५ स्थामे ऋषभदेवनी पर यह एक तरहका उपसर्ग ही था । सो उनके पुण्य प्रभाव से वहां धरणेन्द्र आ उपस्थित हुआ और उसने नमि. विनमिको लेनाकर विनया पर्वतकी दोनो श्रेणियोका राजा बना दिया और इनका वश विद्याधरके नामसे प्रख्यात हुआ।' विद्याधर वंशमें अनेको राना होगये। उपरान्त इनमें रत्नपुर अथवा रथनूपुर नगरके राजा सहमारका पुत्र इन्द्र नामक राजा हुआ । यह श्री मुनिसुव्रतनाथजीके तीर्थकाल में हुआ था। इन्द्रने जितने भी विद्याधर राजा उस समय चहुओर फैल गये थे, उन सबको वश किया और स्वर्गलोकके इन्द्रकी तरह वह वहा राज्य करने लगा था । इसी इन्द्रने अपनेको विल्कुल ही देवेन्द्रवत माना और उसकी तरह ही अपना साम्राज्य फैलाया। जिसप्रकार देवेन्द्रके नौ भेद सामानिक, पारिपद आदि होते हैं; वैसे ही इसने नियत किये थे तथा जितने और देव थे उनकी भी कल्पना इसने विद्याधर लोगोंमें क्षेत्र आदि अपेक्षा की और उनके स्थानोंके नाम भी वैसे ही रक्खे । पूर्वदिशामें जोतिपुर नगरमे राजा मकरध्वज और रानी अदितिका पुत्र सोम लोकपाल नियत किया। राजा मेघरथ और रानी वरुणाके पुत्र वरुणको मेघपुरमें पश्चिमदिशाका लोकपाल बनाया । काचनपुरमे किहकंधसूर्य और कनकाके पुत्र पाश आयुध. वाले कुवेरको उत्तरदिशाका लोकपाल निर्दिष्ट किया एवं किहकंधपुरमे राजा बालाग्नि और रानी श्रीप्रभाका पुत्र यम दक्षिणदिशाका लोकपाल स्थापित किया। इसी तरह असुरनगरके विद्याधर असुर, यक्षकीर्तिनगरके यक्ष, किन्नरनगरके किन्नर इत्यादि रूपमें देवोके १-श्री पद्मपुराण पृ० ४६ । २-पूर्वग्रन्थ पृ० १०६-१०९ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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