SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४] भगवान पार्श्वनाथ । मोको मान्यता देते हुये मध्यलोकसी एथ्वीको ढलवां मानना पड़ेमा, निससे लक्षण दिशाकी और नीचे कलते हुये खरष्टथ्वी अधोलोकमें आसक्ती है । जम्बूहोपकी नदियां नो आमने सामने इधर उधर वहतीं बतलाई गई हैं, उससे भी यही अनुमान होता है कि यह पृथ्वी बीचमे उठी हुई और किनारोंकी ओरको ढलवां है; परन्तु शास्त्रोमें इस. विषयका कोई स्पष्ट उल्लेख हमारे देखनेमें नही आया है । अतएव इस विषयमें कोई निश्चयात्मक बात नहीं कही जा सकी है। किन्तु इतना अवश्य है कि यह विषय विचारणीय है। जैन भौगोलिक मान्यताओको स्वतंत्र रीतिसे अध्ययन करके प्रमाणित करनेकी आवश्यक्ता है। जैनशास्त्रोंमें जिस स्पष्टताके साथ भौगोलिक वर्णन दिया हुआ है; उसको देखते हुए उसमें शंका करनेको जी नहीं चाहता है, परन्तु जरूरत उसको सप्रमाण प्रकाशमें लानेकी है। ___ अस्तु, यह तो स्पष्ट ही है कि धरणेन्द्रका निवासस्यान पाताल अथवा नागलोक है। दि० जैन समाजमें उसकी मूर्ति पांच फण कर युक्त और चार हाथवाली वतलाई गई है। दो हाथोंमें उनके सर्प होते हैं, तथापि अन्य दो हाथं छातीसे लगे हुये रहते हैं, जिनमें एक खुला हुआ और एक मुट्ठी बंधा हुआ होता है। इनकी सवारी कडुवेकी बतलाई गई है। इनकी अग्रमहिपी पद्मावती भी पांच फणवाले संपके छत्रसे युक्त चार हाथवाली मानी गई है। इनके दो हाथोंमें वनदंड और गदा होती है एवं अन्य दो हाथ रसी रूपमें होते हैं, निम रूपमें घरणेन्द्रके बतलाये गए हैं। 17 निगमम ट न. २७ । -
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy