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________________ १२० ] भगवान पार्श्वनाथ | और परिग्रहका एकदेश - आशिक त्याग कर दिया था। वह जान वूझकर इन दुष्कर्मो प्रवत्त नहीं होते थे । ऐसे विवेकमय आचरणका अभ्यास करते हुये, वह आनन्दसे सुर- कुमारोंके साथ अनोखे खेल खेला करते थे । उनका शरीर जन्मसे ही मल, मूत्र, पसीना आढिसे रहित चडा ही स्वच्छ था ।' उसमेका रुधिर दूधके समान सफेद था। वह 'परमोत्कृष्ट शक्तिकर परिपूर्ण था । जैनशास्त्रोंमें उसे 'सुसमचतुरसंठान शरीर ' बतलाया गया है। उसमें स्वभावत एक प्रकारकी प्रिय सुगंधि आती थी और वह 'सहसमटोत्तर' लक्षणोंसे मडित था । सचमुच जैसे वे भगवान महापुरुष थे वैसा ही उनका सुभग शरीर था । एक जैनाचार्य उपर्युक्त श्लोकोंमें भगवान पाश्वनाथके शरीर सौन्दर्यका वर्णन यूं करते हैं: 'भगवान जिनेन्द्रका मुख चन्द्रमाके समान था । नेत्र कमलके समान थे, भुजा परिषाके समान विशाल थीं । कटिभाग पतला और वक्ष स्थल मनोहर किंतु विशाल था । एवं शरीरकी काति तमालवृक्षके समान मनोहर थी। उनका शरीर सफेद रुधिरका धारक कमलके समान सुगंधिवाला, स्वेदजल, मलमूत्रादिसे रहित, समस्त शुभ लक्षणोंका धारक, वज्जवृषभजाराच नामक उत्तम संहननसे युक्त, महामनोहर, कुलपर्वतकी भूमिके समान संघियोंका धारक और कड़ा सप्तधा स्वर्गकर्ती निस्वयोग्यान्य पराप्यपि 1 त्रिशुद्धयान्यरतीचाराणि सागार वृषाप्तये ॥ १८ ॥ - पार्श्वचरित सर्ग १४ । १ - - तित्ययग तप्पियरा हलहर चकाइ वासदेवाह । परिवाम भोवमृमिय आहारो णत्थि णीहारो ॥'
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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