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________________ ___ ९२] भगवान पार्श्वनाथ। समय इसे बड़ा ही भव्य नगर बतलाया गया है | उसकी समानताका और कोई नगर उस समय धरातलपर नहीं था। वह तीथकर भगवानका जन्मस्थान था और अपूर्व था । उसके देखते साथ ही मनुप्योकी तो वात क्या स्वर्गलोकके देवोंके मन भी मोहित होजाते थे। वह प्राचीनकालसे ही तीर्थराजके रूपमें तब भीप्रसिद्धि पा चुना था। श्री पार्श्वनाथनीके बहुत पहले हुये तीर्थकर श्री सुपार्श्वनाथनी इस नगरीको पहले ही अपने जन्मसे पवित्र कर चुके थे। इनसे भी पहले यहां जनधर्मका मांतिदायक प्रकाश फैल चुका था । यही नहीं इस नगरका जन्म ही स्वयं जैनियोके प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवकी आज्ञासे हुआ था और यहांके सर्व प्रथम राजा अकपन नामक इवामुवंशीय महान क्षत्री थे, यह जैनियोंकी मान्यता है, और इस पवित्र तीर्थरानका विशद वर्णन जेन शास्त्रोमें खूब ही मिलता है। भगवान पार्श्वनाथके समय इसकी विशालता प्रकट करनेको जैन कवियोंके पास पर्याप्त शन ही नहीं थे । उनको यही कहना पड़ा था कि'शोभा जाकी कद्री न जाय, नाम लेन ग्लना शुचि गय।" आजका बनारस ही यह पवित्र धाम है । आज भी उसकी जो प्रख्याति है वह उसके पूर्व गौरवकी प्रत्यक्ष सानी है। जैनशास्त्रोंमें कहा गया है कि इस अवसर्पिणी कालके तीन साल जब गुजर चुके थे और चौथा प्रारम्भ हुआ ही था तब वहापर सभ्यताकी मुष्टि भगवान ऋषभदेव हाग हुई थी। ऋपमदेवके पहले -चौदोंने भी बनारसको प्राचीनकालसे पियोंश स्थान बदलाया था। -उनग्गा पृष्ट ११३-आदिपुगा पर्व ११२८-१९०.६२४१-२७५। -
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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