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________________ बनारस और राजा विश्वसेन। [९१ भगवानके पूजन-भजन करनेके लिये आह्वानकर्ता ही हों। प्रजाजन भी वहांके बड़े ही दयालु, सद्धर्मरत और व्यसनोंसे विरक्त थे। वह नियमित रीतिसे अपने धर्मका पालन करते थे और सुमतिसे रहते थे। इसी कारण उनमें धन-सम्पत्तिकी प्रचुरता थी। उनका गोधन अपूर्व था। श्रावकजन सबही प्रकार अपने धर्मका. योंमें व्यस्त थे। उनकी भव्यता ऐसी थी कि अमरेश भी वहां जन्म लेनेको तृष्णाभरे नेत्रोंसे विकल होते थे। वस्तुत यह देश इस भारतवर्षमें ही था और यह आजसे करीब पौनेतीनहजार वर्ष पहले 'काशीदेश' के नामसे विख्यात था। इसकी राजधानी वाराणसी नगरी थी; जो बहुत ही प्राचीन कालसे भारतीय इतिहासमें प्रख्यात् रही है। जैनशास्त्रोंमे उस १-'पार्श्वपुराण' में वही कहा गया है, यथा.-'अपुनीत सब ही विध देस । जहा जनम चाहें अमरेश' इसके अतिरिक्त सकलकीर्ति आचार्यके 'पार्श्वचरित' में भी इसका विशद विवरण मिलता है। श्री चद्रकीयाचार्य प्रणीत 'पार्श्वचरितमें इसका उल्लेख इन शब्दोंमें किया गया है: ' अथास्ति भारत क्षेत्र द्वीपे जम्बुद्रुमाकिते । गगासिन्धुसुवैद्य तो पटषक्षीजत भूतले ॥ २ ॥ तन्मध्ये विषयो वर्षः कागाख्यो विपवापक । जनाना च चकास्तिस्म विडवितसुरालयः ॥ ३ ॥ यत्राजस्त्र प्रमोदिन्यो निरीत्यवग्रहे वसत् । अज्ञपचसद्वान्ये प्रजा स्वर्ग्रता इव ॥४॥ कुर्कुये त्यात मामः कासारैर्विक चौप्तले गस्यटै सीमभिनित्य यश्च कास्ति समततः ॥५॥ प्रत्यग्र कुसुर्मामौदैयः सदामोदयत्वल, दिश. समतत कर्तुस्वभृव सार्थकामिव ॥६॥ विभ्राणे महदुदडापि छत्र विसदा । यप्रदेशावभु पृगद्रुमभृ पाइवोन्नते ॥७॥ सपाक्ष वरत्यर्थ सतत्यै कामसेवन । परलोका क्रियासक्ता . यत्र निर्व्यसना जनाः ॥८॥ सदागमेषु विश्राम. पथिका स्फोटयितश्रमा । यत्राद्धानं प्रभन्यते गृहाजिर विभमदा ॥ ९॥ इत्याटि
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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