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________________ भगवान पार्श्वनाथ। पुद्गलका उल्लेख 'देवता' के रूपमें किया था तथापि पुद्गलाणुओका मिलना और विघटना भी स्वीकार किया था।' ____ उपरान्त वरुण द्वारा तेतरीय मतका प्रारंभ हुआ था। उद्दालकने अग्नि, जल और पृथ्वी तीन ही द्रव्य माने थे, परन्तु वरुणके निकट वह आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी थे। ब्रह्मको ही इनने मुख्य और सर्वका प्रेरक माना था । तथापि वही उनके निकट अन्तिम ध्येय भी था जिममें स्थाई आनन्द का उपभोग था । आत्माकी क्रियाशीलताके विषय में उनकी सराश्यता महीदाससे थी। मनुप्यके प्रत्येक कार्यमे आनन्दको ही इनने मुख्य माना था । मानुषिक आनन्दका प्रारम रमना इन्द्रियसे करके वह उसका अन्त ध्यानावस्थामे करते है। इसमे स्त्री, पुत्र, धन, सम्पत्ति आदिको भी गिन लेते है। यह भी उनके निकट आनन्दके कारण है। वरुणके उपरान्त बालाकि और अजातशत्रु उल्लेखनीय है। बालाकि एक ब्राह्मण और याज्ञवल्स्यका समकालीन था । अजातशत्रु राजपुत्र थे और विदेहके राजा जनकके समयमे हुए थे। राजा जनक फिलासफरोंके प्रेमी व सरक्षक थे और राजा अजातशत्रु स्वय फिलासफर थे । बालाकि और अजातशत्रुमें शास्त्रार्थ हुआ था । मुख्य विषय आत्माका स्वरूप और जगत् एव मनुप्यमें उसका स्थान निर्णय करना था। वालाकि सूर्यमे आत्माका व्यान करना उचित समझता था, पर अजातशत्रु उसे प्रकृति (Nature) का एक अग ही मानता था। १-ए हिस्ट्री ऑफ प्री-बुद्० इन्द० फिला० पृष्ट १२४-१.२ । २-पूर्व प्रमाण पृ० १.३-१५० । ३-पूर्व० पृ० १५१-१५२ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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