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________________ असत् कहते है तो उस समय, जीव को सत् नहीं कह सकते क्योकि अस्तित्व और नास्तित्व दोनों परस्पर विरुद्ध धर्म है। भाव यह है कि हम किसी भी वस्तु को अवक्तव्य भी कह सकते है । दूसरे शब्दो मे अस्तित्व और नास्तित्व दोनो धर्मों को एक साथ कथन करने वाली वाणी की असमर्थता के कारण वस्तु को अवक्तव्य या अनिर्वचनीय भी कहा जा सकता है। । - ---कथञ्चित् है, तथापि अवक्तव्य है । तात्पर्य यह है कि है कि जब हम किसी वस्तु को स्व-रूप की अपेक्षा सत् कह कर उस को एक साथ अस्ति नास्ति रूप अवक्तव्य रूप से विवेचना करना चाहते है तो उस समय हम उसे 'कञ्चित् है तथापि अवक्तव्य है' इन शब्दो से कह सकते है। । ६- कथञ्चित् नही है, तथापि प्रवक्तव्य है। अर्थात् जब हम वस्तु के नास्तित्व धर्म की विवक्षा के साथ अस्तिनास्तिरूप प्रवक्तव्य रूप विवेचना करना चाहते है तो उस समय हम प्रत्येक वस्तु को "कथञ्चित नही है, तथापि प्रवक्तव्य है" इन शब्दो द्वारा अंभिव्यक्त कर सकते है। - - - - - ७-कथञ्चित् है, कथञ्चित् नही तथापि अवक्तव्य है। भाव यह है कि जब हम किसी वस्तु मे स्व-रूप की अपेक्षा अस्तित्व, पर-रूप की दृष्टि से नास्तित्व होने पर भी एक साथ अस्तिनास्तिरूप अवक्त्तव्य रूप पाते है तब हम उस वस्तु को 'कथञ्चित् है कथञ्चित् नही है तथापि प्रवक्तव्य है" इन शब्दो से कह सकते हैं। वैसे तो प्रत्येक वस्तु मे अनन्त धर्म रहते है, और उन अनन्त धर्मों के अनन्त प्रकारो की कल्पना भी की जा सकती है तथापि व्यस्त, समस्त, विधि तथा निषेध को इष्टि से वाक्यो
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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