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________________ (४८) ९ क्षेत्र (जहां वह पडी है उस) की अपेक्षा से भी "हे" ऐसे कही जा सकती है। काल (जिम समय पुस्तक अवस्थित है) की अपेक्षा भी विद्यमान है । अत पुस्तक को 'कथञ्चित् है" इन शब्दों से कहा जा सकता है। २.-कथञ्चित् नहीं है । अभिप्राय यह है कि प्रत्येक पदार्थ परचतुष्टय (अर्थात् दूसरे पदार्थ के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव) की अपेक्षा से नास्तिरून भी है। जैसे घड़ा द्रव्य की अपेक्षा पार्थिव रूप से विद्यमान है, किन्तु जलरूप से नहीं । क्षेत्र (स्थान) की अपेक्षा अर्थात् लुधियाना नगर की अपेक्षा अवस्थित है, किन्तु पटियाला नगर की अपेक्षा नहीं है । काल (समय) की अपेक्षा शीत ऋतु की दृष्टि से है किन्तु वसन्त ऋतु की दृष्टि से नहीं है । तथा भाव (गुण) को अपेक्षा श्वेत रूप से मौजूद है, किन्तु पीत रूप की अपेक्षा से नहीं है। अत हम घड़े को कथन्नित् नहीं है, इन शब्दों द्वारा भी कह सकते हैं। . . ३-कथञ्चिन है, और कथञ्चित् नहीं है। हार्द यह है कि जब हम क्रम से वस्तु को स्व रूप की अपेक्षा से 'है' और पर रूप की अपेक्षा से नहीं है। ऐसा कहते हैं तो हम प्रत्येक वस्तु को 'कश्चित् है, और 'कथञ्चित् नहीं है' इन शब्दों द्वारा भी कह सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक वस्तु में म्वरूपचतुष्टय की दृष्टि से अस्तित्व है और पररूपचतुष्टय की दृष्टि से नास्तित्व भी पाते हैं। ४-कथञ्चित् कहा नहीं जा सकता, अर्थात् अवक्तव्य । अभिमत यह है कि हम वस्तु के अस्तित्व और नास्तित्व धर्म को एक साथ नहीं कह सकते हैं। जिस समय जीव को सन् कहते हैं, उससमय वह असत् नहीं है और जब जोव को जड की अपेक्षा
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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