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________________ (३७) इस तरह पदार्थों में अवस्थित विविध धर्मों को बतला कर तथा आग्रह-शील और अशान्त मन को शान्त करके अनेकान्तवाद सब को उदारता का मंगलमय पाठ पढ़ाता है। देखा, अनेकान्तवाट का अपूर्व निर्णय और उसकी व्यवहार-साधकता अनेकान्तवाद की उपयोगिता : संसार में जितने भी एकान्तवादी विचारक है, वे पदार्थ के एकएक अंश (धर्म) को पूर्ण पदार्थ समझ बैठते है । परिणाम यह होता है कि उन का परस्पर विवाद होता है और कभी कभी तो वे इतने आपही हो कर लड़ते-झगड़ते दिखाई देते है कि मनुष्यता भी उन का माथ छोड देती है । भगवान महावीर के युग मे ये विवाद पूर्ण यौवन पर थे। उस समय राजगृह नगरी के चौराहो पर पण्डितों के दल के इल घूमा करते थे, धर्म और सत्य के नाम पर कदाग्रह की पूजा हो रही थी । सभ्यता को मुंह छिपाने को भी स्थान नहीं मिल रहा था। असभ्यता और अनुदारता विद्वत्ता के सिंहासन पर बैठी हुई थी। पण्डिती के दलो मे जो आपस में अनेक तरह भिड़ पड़ते थे, बोला चाली के साथ-साथ हाथापाई, मुक्कामुक्की तक की नौबत भी आजाती थी। ये पण्डित बड़ी तेजी से धर्मरक्षा के लिए प्राण लेने और देने के लिए प्रतिक्षण तैयार रहते थे। कहीं नित्यवादी अनित्यवादी का मस्तक पत्थर मार कर इस लए फोड देता था कि जब आत्मा अनित्य आत्मा को एकान्त नित्य मानने वाला यिक्त नित्यवादी कहलाता है । यह आत्मतत्त्व में किसी प्रकार की भी अनित्यता स्वीकार नहीं करता है। और जो इस आत्मा को सर्वथा अनित्य मानता है. वह अनित्यवादी कहा जाना है। यह आत्मा को क्षणिक स्वीकार करता है। इसे आत्मत्तक मे किसी प्रकार की नित्यता इष्ट नहीं है।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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