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________________ (२३) " चाहिसा धर्म के जयनादो से उसे जीवन से न लाकर, केवल उसकी दुहाई देते रहने से अहिंसा की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती हैं । अहिंसा को जीवनोपयोगी न बना कर मात्र उस की दुहाई देते रहने से तो अहिंसा बदनाम होती है और जनमानस मे उसके लिए श्रश्रद्धा एव अरुचि पैदा होती है । इस बात की पुष्टि गाधी जी के एक भाषण द्वारा हो जाता है, जिस मे उन्हीं ने कहा था कि जब मै अहमदाबाद में था, तब वहा के काकरिया तालाब का पानी सूख जाने से जैनी लोग मछलियों को पानी पिलाने जाते थे और कई बार मैं देखता हूँ कि दयाधर्मी चीटियों को आटा डालने जाते है । दूसरी तरफ उन का जीवन देखें तो मछलियां को पानी पिलाने वाले अपने पड़ौसी की तरफ, वह भूखा है या बीमार है, कुछ भी ध्यान नहीं देते है | मछलियां को पानी पिलाने वाले सट्टा और व्याज आदि के धन्वो द्वारा मानव का खून पी जाने में तनिक भी हिचकचाते नहीं है। चींटियो को आटा डालने वाले दूसरी ओर विधवा की धरोहर को अजगर की भाति निगल जाते है । यह सब देख कर मुझे आश्चर्य होता है कि जैनियों की हिंसा कैसी है ? जैन धर्म की अहिंसा महान है । देश, जाति और परिवार के जीवन निर्माण के लिए वह एक वरदान के रूप में हमारे सामने आती हैं तथापि गान्धी जैसे युगपुरुप के मानस मे जो भ्रान्त धारणा बन गई है उसका उत्तरदायित्व उन लोगो पर है, जो "अहिंसा धर्म की जय हो" ये नारे तो लगाते है किन्तु अपने जीवन का एक कण भी उससे छूने नहीं देते। वस्तुत जैन अहिंसा की लोकप्रियता और मार्मिकता भिज्ञ और यथार्थ रूप से उसे जीवन मे नलाने वाले लोगों के दिखावटी कारणामों से अहिंसा की यह दुरवस्था हुई है और हो
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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