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________________ (२) दण्डने पर भी संसार में कोई सुखी नहीं मिलेगा । इसीलिए भगवान महावीर ने हिंसा का विरोध किया और अहिंसा की प्रतिष्टा करते हुए उपदेश दिया सुख सब को अनुकूल है, दु.ख सब को प्रतिकूल । दयाधर्म है इसलिए, सब धर्मों का मूल ॥ जीवन और अहिंसा___अहिंसा मदा से सुखों का स्रोत रही है, इसकी आराधना से मानव ने लौकिक और पारलौकिक सभी प्रकार की सुखशान्ति प्राप्त की है। आज भी अहिसा में वही शक्ति है। आज भी अहिसा मानव के क्ल शो और कष्टों का अन्त ला सकती है किन्तु यह तभी हो सके. गा जब अहिमा का आदर किया जायगा उसे जीवन में उतारा जाय गा. उसकी आराधना मे तन मन अर्पित कर दिया जायगा । पर आज अहिंसा की जो दुर्दशा हो रही है, उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है। जिस अहिंसा का जन्म ही हिंसा की आग पर पानी डालने के लिए हुआ था, आज स्वार्थी मनुष्य उमी का वेष पहन कर जनमानस मे आग लगाने का यत्न करता है, और तो और, समार को सुखशान्ति का महापथ दिखलाने वाला त्यागा वगे भी आज भदकाफिरता है । सत्य अहिंसा महापाठ पढ़ाने वाला साधुसमाज भी आज हिंसा का शिकार हो रहा है। आज साधुओ में लड़ाइए होती हैकश होते है. एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए साधु महात्मा भी किस्वित सकोच नहीं करने पाते, तभी तो पण्डित नेहरु ने कहा था कि भारत के ५६ लास्त्र साधुओं में मुश्किल से हजार साधु माधुता धनी होगे । वास्तव में अहिंसा की महत्ता बाते बनाने से कायम नहीं की जा सकनी वह तो उसे जीवन में उतारने से होती है।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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