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________________ (११) भंग माछली सुरापान जो जो प्राणी खाए । धर्म नियम जितने किये सभी रसातल जाए ॥ जे रत्त लागे कापड़े नामा होए पलीत । जो रत्त पीवे मानुषा तिन क्यों निर्मल चीत ॥ अहिंसा के चरणों में अपने श्रद्धापुष्प अर्पित करते हुए शेख सादी कहते हैं - खुदा रा बर वन्दा, बख्शाइश अस्त । कि खल्क अज़ वजूदश दर आसाइश अस्त । अर्थात्- खुदा उसी पुरुप को कृतकृत्य करता है, जिसके हाथों से किसी भी जीव को हानि नहीं पहुँचने पाती। एक फारसी का कवि कितनी सुन्दर बात कहता है - हजार गंजे कनात, हजार गंजे करम । हजार इताअत शवहा, हजार वेदारी ॥ हजार सिजदा बहर सिजदा रा हजार नमाज। कबूल नेस्त गर खातरे वयाजारी ॥ अर्थात्-चाहे मनुष्य धैर्य मे उच्च श्रेणी का हो, हजार खजाने प्रनिदिन दान करता हो, हजारों राते भक्ति मे व्यतीत करता हो, हजार सिजदे (नमस्कार) करता हो और हर सिजदे के साथ हजार-हज़ार नमाज पढ़ता हो तो यह सब पुण्यक्रियाएं व्यर्थ ही होगी, यदि यह पुरुप किसी को कष्ट देता है।। इस के इलावा पाश्चात्य दर्शन भी -
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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