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________________ (२०४) छीने, मैंने अनेक देशो को लूटा, पर अव अन्त समय यह धन मेरा साथ नहीं दे रहा है।" - धन की असारता और आपातरमणीयता देख कर ही सिकन्दर ने राज्य अधिकारियो को अपना एक अन्तिम सदेश दिया था। उसे ने कहा था__ "मेरे दोनों हाथ कफन से बाहिर रखना। ताकि लोग देखले कि मेरे हाथ खाली है और लोग सोच सके कि जो मूर्खता सिकन्दर ने की है वह हम न कर सके। महात्मा गान्धी ने एक बार कहा था सच्चे सुधार का, सच्ची सभ्यता का लक्षण परिग्रह बढाना नही है बल्कि उस का विचार और इच्छा-पूर्वक घटाना है। ज्यो-ज्यो परिगह घटाए त्यो-त्यो सच्चा सुख और सच्चा सन्तोष बढ़ता है, सेवाशक्ति बढती है। अपरिग्रह से मतलब यह है कि हम ऐसी किसी चीज का संग्रह न करे जिस की हमे आज दरकार नहीं है। सन्त विनोवा कहते है परिग्रह की चिन्ता से अन्तरात्मा का अपमान होता है, अपरिग्रह की चिन्ता न करने से विश्वात्मा का अपमान होता है इसीलिए अपरिग्रह सुरक्षित है ।। अपरिग्रह की कैची ज्ञान पर भी चलानी चाहिए, व्यर्थ भराभर ज्ञान का परिवह रखना योग्य नहीं है। ऊपर की पक्तियो मे परिचह की यह कितनी बड़ी कडो बालोचना है ? विश्व के प्रत्येक सन्त-हृदय विचारक ने परिगह-भावना की भर्त्सना ही की है और उसे सर्वथा हेय
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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