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________________ (१७८) सभी वस्तुप्रो की मर्यादा कर लेनी चाहिए, उन की सीमा बाध लेनी चाहिए। - परिग्रह की मर्यादा-- पस्ग्रिह को परिमाण (मर्यादा) कर लेने से इच्छाओं का दमन होता है। तृष्णा के असीम गगन मे मनविहग जो उडारिया ले रहा है, वह नियन्त्रित हो जाता है । मन के नियत्रित हो जाने पर, जीवन मे शान्ति का सचार होता है। इस के विपरीत, मन यदि अनियत्रित है, आशाओ का दास बना हुआ है कामनाओ के झूले पर झूल रहा है, दिनरात धन बटोरने का ही स्वप्न ले रहा है, धन को एकत्रित करने के लिए उसे त्यादि-अन्याय-अनीति के कुपथ पर चलना पड़े तो उस पर चलने मे वह जरा भी सकोच- नही करता है, तो ऐसा मन सदा के लिए दुखमय बन जाता है। दुःखो तथा क्लेपो का दानव उसपर बुरी तरह अपना शासन जमा लेता है । वस्तुत ऐहिक कामना, लोभ-लालच आदि विकार दुखो को अपने साथ लेकर चलते है। इन मे पारस्परिक शरीर और छाया का सा सम्बन्ध रहता है। इस सत्य से कभी इन्कार नही किया जा सकता है कि वासनाओ का दास व्यक्ति स्वय भी दुखी होता है, जिस परिवार मे रहता है, उसे दुखी करता है, जिस समाज का वह सदस्य है उसे परेशान करता है,उस के सगठन को छिन्न-भिन्न कर देताहै और जिस, राष्ट्र में वसता है उस के उज्ज्वल भविष्य को भी प्राग लगा देता है। ऐसा स्वार्थी जीवन अनर्थों का जीवित प्रतीक वन बैठता है। मक्कार दुर्योधन को कौन नहीं जानता है ? शान्तिप्रिय त्रिखण्डाधिपति श्री कृष्ण ने शान्तिदूत बन कर उसे कितनी बार समझाया था, पर उस ने एक न मानी ? उस ने तो यहा तक कह दिया था कि तीक्ष्ण सूई के अग्रभाग के समान
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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