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________________ (१७७) तो अकुश रखना ही होगा। ऐसा किए विना जीवन मे शान्ति के दर्शन नही हो सकते है। लोभवृत्ति पर अकुश रखने का सर्वोत्तम ढग यह है कि गृहस्थ को चाहिए कि वह धन, धान्य, सोना, चादी, घर, खेत आदि जितने भी पदार्थ है, अपनी आवश्यकता के अनुसार उन की निश्चित मर्यादा कर ले । एक लाख से अधिक धन नही रखूगा,चार मकानो तथा दो दुकानो से ज्यादा मकान और दुकाने नही बनाऊगा। इस प्रकार उसे अन्य सभी पदार्थों की संख्या निर्धारित करके अपनी अमर्यादित इच्छामो को मर्यादित कर लेना चाहिए। आवश्यकता से अधिक सग्रह करना पाप है, इस से मानव की मनोवृत्ति उत्तरोत्तर दूषित होती चली जाती है। ऐसा समझ कर इच्छाप्रो के वह रहे नद पर सन्तोष का बाध लगा लेना चाहिए । व्यापार आदि में यदि निश्चित मर्यादा से कुछ अधिक धन प्राप्त हो तो गृहस्थ को उसे परोपकार आदि सत्कार्यो मे लगा देना चाहिए। अपनी निश्चित की गई मर्यादा को कभी भी भग नही करना चाहिए। इसी मे गृहस्थ का हित निहित है। आगे वढना ही जीवन का प्रधान लक्ष्य होता है, परन्तु आगे वढने के लिए चित्त की शान्ति सर्वप्रथम अपेक्षित होती है। चित्त की शान्ति का सर्वोत्तम उपाय है-इच्छाप्रो का सकोच, परिग्रह की मर्यादा। जव तक कामनाओ का कण्ठ नही मरोड़ा जाता और इच्छाओ को सीमित नही किया जाता, तब तक जीवन में कभी सुख-शान्ति के दर्शन नही हो सकते । इच्छायो के सकोच और परिग्रह की मर्यादा के लिए ही भगवान महावीर ने गृहस्थो को अपरिग्रहवाद के आश्रयण पर जोर दिया है। अपरिग्रहवाद कहता है कि मनुष्य को उपभोग्य और परिभोग्य
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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