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________________ (१६०) सुखो के लिए तप का आराधन न करे, स्वर्गादि के सुखों के लिए तप न करे, आत्मप्रशंसा के लिए तप को जीवन मे न लाए, किन्तु केवल आत्मशुद्धि तथा कर्मों की निर्जरा के लिए हा तप का अनुष्ठान करे। ईश-स्मरण भी एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है, अत. इस अनुष्ठान को भी किसी ऐहिक स्वार्थ को लेकर नही करना चाहिए । इस का आराधनं तो केवल स्वच्छ तथा परमार्थ की भावना से ही करना चाहिए । ईश्वर-प्राप्ति का उपायलोग प्राय: एक प्रश्न किया करते हैं कि जैनधर्म की दृष्टि से ईश्वरप्राप्ति का सरल उपाय कौनसा है ? इस के सम्बन्ध में भी प्रस्तुत में थोड़ी सी चर्चा कर लेनी उपयुक्त रहेगी। ईश्वरवाद के प्रकरण मे इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न की उपेक्षा भी कैसे की जा सकती है ? वैदिकदर्शन में "ईश्वर-प्राप्ति'' इस शब्द का अर्थ समझा जाता है-ईश्वर को पा लेना, ईश्वर के स्वरूप को समझ लेना या अपनी सत्ता को मिटा कर ईश्वर में सदा के लिए लीन हो जाना। जैसे जलकण सागर में मिल कर सागररूप हो जाता है, ऐसे जीव भी जो ईश्वर का अश हैं, ईश्वर में मिल कर ईश्वररूप हो जाता है, उस की अपनी सत्ता सदा के लिए समाप्त हो जाती है। इन्ही भावो का परिचायक शब्द हैईश्वरप्राप्ति । किन्तु जैनदर्शन इस ईश्वरप्राप्ति मे विश्वास नही रखता है। जैनदर्शन तो भक्त को स्वय भगवान बन जाने की बात कहता है । उस का मन्तव्य है कि भगवान की तर्फ मत दौड़ो, किन्तु अपने जीवन मे हो भगवत्तत्त्व को जगायो।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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