SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५९) सास सफल सो जानिए, जो प्रभु-सिमरण में जाय । और सांस यू ही गए, कर-कर बहुत उपाय ।' - ईशस्मरण करते समय एक वात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि ईशस्मरण करने के साथ-साथ ईश्स्वरूप को प्राप्त करने के लिए शास्त्रो में जो साधनसामग्री का निर्देश किया गया है,उसे भी जीवन मे उतारने का यत्न करते रहना चाहिए। केवल उच्च स्वर से ईश्वर, ईश्वर करने से कोई विशेष लाभ नही हो सकता है। पालतू तोता दिन मे सैकडो बार राम-राम बोलता है, पर -उस से उसे ईश्वरस्वरूप की प्राप्ति थोडे ही हो सकती है ? ईश-गुणो को जीवन का साथी बना कर ही. ईश्वरस्वरूप को पाया जा सकता है। अत ईश-भजन करने के साथ-साथ जीवन मे जो विकार नाच रहे है, उन का परिहार करना भी अत्यावश्यक है और ईश्वरप्राप्ति के लिए शास्त्रों मे जो साधन वणित है. उन्हे जीवनागी बनाना भी ज़रूरी है । इसी मे जीवन का कल्याण निहित है। सासारिक महत्त्वाकाक्षाओ की पूर्ति को आगे रखकर ईश्वर-स्मरण करना अध्यात्मजीवन का एक बड़ा दोष माना गया है। क्योकि ईश्वर तो वीतराग हैं। वहा राग-द्वेष का सर्वथा अभाव है । अत ईश्वर का नाम लेने से वह प्रसन्न होगा, प्रसन्न होकर हमारी कामना पूर्ण करेगा,- ऐसी आशा कभी नही रखनी चाहिए। जैनदर्शन किसी भी आध्यात्मिक अनुष्ठान को ऐहिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए करने का सर्वथा निषेध करता है। जैनदर्शन के, लब्धप्रतिष्ठ आगम श्री दशवकालिक सूत्र के नवम अध्ययन मे लिखा है कि तपस्वी साधु ऐहिक
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy