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________________ .(१३१) पशुओ की गरदनो पर छुरिया चलाएगा, हत्याएं करेगा, लोगो को लूटेगा, उन के, धन, परिजन का- अपहरण करेगा। परन्तु इस मे उस मनुष्य का कोई दोष नहीं होगा, क्योकि यदि ईश्वर उसे कसाई, डाकू या चोर न बनाता तो वह ऐसे दुराचारप्रधान दुष्टाकर्म न करता। ईश्वर , को भाग्यविधाता मान कर यह स्वीकार करना ही होगा कि,मनुष्य, पशु आदि के जीवन मे जो- अशुभ प्रवृत्तिया चलती है, उन की जबाबदारी ईश्वर पर है। यदि कहा जाए कि ईश्वर कब कहता है कि -मनुष्य बुरे कर्म करे ? तो.हम पूछते है कि मनुष्य बुरे कर्म क्यों करता है ? इसीलिए न कि उस की बुद्धि पित है, खराब है। दूषित तथा खराब बुद्धि की प्राप्ति का कारण क्या है,? मनुष्य का भाग्य, और उस दुष्ट भाग्य की रचना- किस ने की है ? उत्तर स्पष्ट है, ईश्वर ने । न ईश्वर मनुष्य का ऐसा दुष्ट भाग्य बनाता और न मनुष्य ऐसे दुष्ट कर्मों का आचरण करता। जब ईश्वर ने स्वय ही मनुष्य का दुष्ट भाग्य बना डाला है तो विवशता से मनुष्य को भी वैसे कार्य करने पड़ते हैं। इस तरह मनुष्य आदि के जीवन मे जो भी अशुभ प्रवृत्तिया चलती है उन का मूल परम्परा से, ईश्वर ही प्रमाणित होता है। इस प्रकार ईश्वर को भाग्यविधाता मान लेने पर उस पर ससार के सभी दोपो का उत्तरदायित्व आ गिरता है.और मनष्य उस उत्तरदायित्त्व से सर्वथा मुक्त हो जाता है। , इस सत्य को एक और उदाहरण से समझिए ? कल्पना करो । एक पापी व्यक्ति है । दिन रात पापाचार मे मग्न रहता है। एक दिन उस से किसी धर्मी ने पूछा, भाई-त इतना समझदार हो कर पाप क्यो कर रहा है ? तुझे परम-पिता
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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