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________________ (१२९) अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा था कि मनुष्य किस की प्रेरणा से पाप करता है, न चाहता हुआ भी पाप मे क्यो प्रवृत्त हो जाता है ? इस पर श्री कृष्ण ने कहा था-अर्जुन ! काम, क्रोध आदि विकार ही मनुष्य को पापमय मार्ग पर ले जाते है, इन्ही के प्रभाव से मनुष्य कुपथगामी बनता है। उस समय श्री कृष्ण ने यह नहीं कहा कि पाप ईश्वर कराता है। उन्हो ने ईश्वर का नाम तक नहीं लिया। उन्हो ने उस समय वास्तविक तथ्य अर्जुन के सामने रखा था। वस्तुत मनुष्य की पापमय वृत्तियो के साथ ईश्वर का कोई सरोकार नहीं है। पाप का उत्तरदायित्व मनुष्य पर है। जिस प्रकार मनुष्य द्वारा किए गए पाप के साथ ईश्वर का कोई सम्बन्ध नही है, ठीक उसी प्रकार जीवन के उद्धार या उत्थान के साथ भी ईश्वर का कोई सम्बन्ध नही है । यदि ईश्वर ही हमारा उद्धार करने वाला होता तो हम कभी के ऊपर उठ गए होते । हमारा उद्धार करने वाला अन्य कोई नही है। जब उठेगे तो अपनी स्वय की अहिसा और सत्य की साधना की यहरी अगडाई लेकर अपने आप ही उठेंगे । भगवान महावीर ने "अप्पा कत्ता विकत्ता य" यह कहकर मनुष्य को स्वय अपने जीवन का निर्माता उद्घोषित किया है। योगवशिष्ठकार ने "नर कर्ता नरो भोक्ता, नर सर्वेश्वरेश्वर" यह बतला कर यही ध्वनित किया है कि मनुष्य ही अच्छे-बुरे कर्म करता है और उनका फल भी मनुष्य अपने आप ही भोगता है, यह मनुष्य तो ईश्वर का भी ईश्वर है। गीता अ० ६, श्लोक ५ मे भगवान कृष्ण भी इसी सत्य की प्रतिष्ठा करते हुए कहते हैं- ... * देखो गीता, अ० ३ श्लोक ३६-३७
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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