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________________ ( १२० ) वडे विगाल जगत का निर्माण करने वाले परमपिता परमात्मा का निर्माता भी कोई अवश्य होना चाहिए । यदि कहा जाए कि परमात्मा तो अनादि है, उसे बनाने वाला कौन हो सकता है ? तो "जहा-जहां पदार्थत्व है, वहां-वहां कर्तृत्व है" यह सिद्धान्त समाप्त हो जाता है । इस सिद्धान्त को भी पकड़ कर रखना और साथ मे ईश्वर को उस से बचाना भी, ये दो वाते कैसे हो सकती है ? पुत्र को सत्ता स्वीकार करने पर उस के पिता से कैसे इन्कार किया जा सकता है ? वह तो मानना ही होगा । एक ओर कुआ है, तो दूसरी ओर खाई । इस से बचने का एक ही मार्ग है, वह यह कि जगत अनादि मान लिया जाए । यदि जगत को अनादि मान लेते हैं तो कोई विवाद उत्पन्न नही होता, और सभी प्रश्न अपने आप समाहित हो जाते है । जगत्कर्ता ईश्वर पर आपत्तिया ईश्वर को जगत का निर्माता मान लेने पर ईश्वर पर अनेको आपत्तिया आती है । ईश्वर का ईश्वरत्व ही लड़खड़ा जाता है । ईश्वर को जगत का निर्माता स्वीकार कर लेने पर ईश्वर पर जो आपत्तिया यातो हैं, मात्र दिग्दर्शन के लिए उन मे से कुछ एक का न.चे की पक्तियों में निर्देश किया जाता है १ - प्रत्येक पदार्थ जब ईश्वर की रचना है तो ईश्वर किस की रचना है ? जिन शक्ति ने ईश्वर का निर्माण किया है उसे बनाने वाला कौन है ? २ - ईश्वर ने समार को किस तन्त्र ने बनाया है ? कुम्हार जैने माटी, चाक यदि कारण सामग्री मे घडा. प्याला आदि
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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