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________________ धर्म और दर्शन (ज्ञान) ५१ १८७ ज्ञान सम्पन्न जीव चार गति-रूप ससार अटवी मे विनाश को प्राप्त नही होता । १८८ उपयोग की दृष्टि से ज्ञान एक प्रकार का है । १८६ ज्ञान दो प्रकार का कहा है, प्रत्यक्ष और परोक्ष (अवधि, मन पर्यव और केवल ये तीन ज्ञान प्रत्यक्ष है तथा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान परोक्ष है ।) १६० ज्ञान की आराधना करने से जीव अज्ञान का क्षय करता है। १६१ ज्ञान के अभाव मे चारित्र-सयम नही होता। १६२ जिसप्रकार नीलवान पर्वत से निकल कर सागर मे मिलनेवाली शीता नदी अन्य नदियो मे श्रेष्ठतम है, उसीप्रकार वहुश्रुत आत्मा सर्वसाधुओ मे श्रेष्ठ होता है। १६३ जिसप्रकार अनेक औपधियो से दीप्त महान् मन्दराचल पर्वत सर्व पर्वतो मे श्रेष्ठ है उसीप्रकार बहुश्रुत-आत्मा सर्व-साधुओ मे श्रेष्ठ होता है । १६४ जिसप्रकार अगाध जल से परिपूर्ण स्वयम्भूरमण समुद्र अनेक प्रकार के रत्नो से भरा हुआ होता है, उसीप्रकार बहुश्रुत आत्मा अक्षय ज्ञान गुण से परिपूर्ण होता है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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