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________________ है, 'वाणी-वीणा' को पढकर हृदय आनन्द की तरगो मे डूबने लगता है और लगता है कि हम गगा की पावन धारा में एक बजरे के ऊपर बैठे हो, आज के युग मे ऐसी पुस्तको की पहले से अधिक आवश्यकता है। -विश्वम्भर 'अरुण' वाणी वीणा पढ मन मेरा, आनन्द से भर आया, हर पद के गुञ्जन मे देखी, पन्त निराला की छाया । स्वागत है कविराज तुम्हारा काव्य क्षेत्र मे तुम चमके, नीलगगन मे दिनकर के सम, दिन-दिन जगती पर दमके । -साध्वी उज्ज्वलकुमारी 'वाणी वीणा' किसी सम्प्रदाय विशेप का स्वर नही, बल्कि सच्ची निष्ठा के साथ मानवीय कर्तव्य कर्मों का स्वर सधान है, जीवन जगत के श्रेयस की पकड है। -डॉ० पारसनाथ द्विवेदी 'वाणी वीणा' मुक्तक रत्नो से सुसज्जित ,सुन्दर हार सी एक मौलिक कृति है, जो साहित्य मूर्ति के कण्ठाभरण सी प्रतीत होती । , —मुनि 'कुमुद * वाणी-वीणा' में कविवर श्री गणेश मुनि शास्त्री ने जीवनोपयोगी-मुक्तक काव्यो की भव्य रचना की है । सरस्वती के भण्डार मे यह पुस्तक अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है, कवि की कल्पना मधुर है, भापा प्राजल है और शैली प्रभावमयी है, आशा है कि प्रत्येक अध्येता 'वाणी-वीणा' से प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को प्रशस्त बनाने का यत्न करेगा। -विजय मुनि शास्त्री 'वाणी-वीणा' का हर मुक्तक, मुक्ति दिखाने वाला है। दर्द भरी इस दुनिया को सुरधाम बनाने वाला है। भूले मटके मानवगण को, दानवता से दूर हटा। मानवता का मधुर-मधुर शुभ पाठ पढाने वाला है। क्यो न कहो, बधाईयां दें हम, गुणी 'गणेश' मुनीश्वर को।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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