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________________ थीसीस (महानिवन्ध) है, इस प्रकार की पुस्तक लिखने वालो को विश्वविद्यालय की ओर से पी० एच-डी० की उपाधि से विभूषित किया जाता है, प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री गणेश मुनि जी शास्त्री भी पी० एच-डी० की उपाधि के योग्य अधिकारी है। --विनय ऋषि अहमदनगर (महाराष्ट्र) १५-२-१९७१ गौतम गणधर शिष्य थे, महावीर के खास, अब तक उनका न लखा, हिन्दी मे इतिहास । ज्ञानी गुणी 'गणेशजी', शास्त्री सुलझे सन्त, इन्द्रभूति-गौतम' लिखा, अद्भुत अनुपम ग्रन्थ । गुरुवर 'पुष्कर' हैं जिन्हे मिले महा गुण खान । उनकी हो न क्यो कहो, कृतियां आलीशान । जैसा लेखन उच्च है, है सम्पादन उच्च, भाव भरा मुख पृष्ठ औ, सर्व प्रकाशन उच्च । गहन मनन अध्ययन औ, चिन्तन देख विशाल, है अभिनन्दन कर रहा, गद् गद् 'चन्दनलाल'। --चन्दन मुनि वाणी-वीणा ~कवयिता : गणेश मुनि शास्त्री, साहित्यरत्न -सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' -भूमिका : डॉ० पारसनाथ द्विवेदी, आगरा -प्रकाशक अमर जैन साहित्य सदन, जोधपुर - मूल्य दो रुपया पचास पैसे 'वाणी-वीणा' जीवन की सात्विक प्रवृत्तियो की अभिव्यक्ति का काव्यात्मक स्वरूप है, आज के युग वैषम्य और कुण्ठाओ मे पल रहे समाज के लिए इस प्रकार का सगीतात्मक प्रेषण प्रेरणाप्रद हो सकता है, समभाव, मैत्रीदिवस, प्रेममत्र, धार्मिक्ता, अहिंसा आदि जैनधर्म से समस्त उदात्त प्रवृत्तियो पर सुन्दर काव्यात्मक पक्तियां प्रस्तुत की गई हैं--जो लेखक के चिन्तन, मनन व अनुभूति की सात्विकता का पोपण करती है, कवि की इस मानवतावादी दृष्टि मे ही वीणा का वैशिष्ट्य निहित है । -नवभारत टाइम्स, मार्च १९७० वम्बई
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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