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________________ अहिंसा की बोलती मीनारें -लेखक : गणेश मुनि, शास्त्री साहित्यरत्न -~भूमिका : यशपाल जैन, दिल्ली -प्रकाशक सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा-२ -मूल्य : चार रुपये, समाज सव ओर प्रेम, करुणा और वन्धुता के स्थान पर आशका, भय और अविश्वास का बोलबाला है। ये सब शान्ति के लिए खतरे हैं, जिनसे त्राण पाने का यदि कोई अमोघ अस्त्र है, तो वह अहिंसा ही है । जहाँ अहिंसा है, वहाँ जीवन है और जहाँ अहिमा का अभाव है, वहाँ जीवन का अभाव है। इस पुस्तक मे अहिंसा की इसी विराट और व्यापक शक्ति का ऐतिहासिक, सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दृष्टि से सूक्ष्म विवेचन किया गया है। पुस्तक सात खण्डो मे विभक्त है और प्रत्येक खण्ड को 'बोलती मीनार' की सज्ञा दी गई। प्रथम खण्ड मे अहिंसा के आदर्श को समझाते हुए, विराट् दृष्टि और विभिन्न मतो मे उसका निरुपण किया गया है दूसरे अध्याय मे सामाजिक हिंसा के विचित्र रूप शोषण, दहेज आदि की चर्चा करते हुए बताया गया है कि मानव जाति एक है . तीसरे खण्ड मे अपरिग्रहवाद की विस्तार से चर्चा की है चौथे और पांचवे अध्याय मे अहिंसा के बुनियादी सिद्धान्त अनेकान्तवाद और शाकाहार की चर्चा की गई है । छठे खण्ड मे रेडियो सक्रियता आणविक शक्ति, अणु-परीक्षण आदि का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि विज्ञान पर अहिंसा की विजय किस प्रकार होती जा रही है और उसका समन्वय कैसे हो सकता है। अन्तिम सातवें खण्ड मे अहिंमा और विश्व शान्ति जैसे ज्वलत प्रश्न पर विभिन्न शीर्पको के अन्तर्गत विस्तार से चर्चा करते हुए इस दिशा मे भारत के योगदान की चर्चा की गई है। पुस्तक में अहिंसा के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्ष पर काफी सुपाठ्य सामग्री दी गई है । भापा सरल, सुवोध और शैली इतनी रोचक है कि सीमित ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। गेटअप और छपाई की दृष्टि से भी पुस्तक मच्छी और विपय वस्तु के कारण तो सग्रहणीय है ही। -दैनिक हिन्दुस्तान ४ जनवरी १९७०, दिल्ली
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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