SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) प्रयत्न करना एक धृष्टता मात्र है। परिमित ज्ञानशक्तिको रखनेवाले छद्मस्थ मनुष्यके लिये एक तरहसे यह असंभव ही है । पर यह सब कुछ मानते हुये भी आखिर यह पुस्तक लिखी ही गई है, इसका सब कुछ श्रेय हृदय-प्रेम, प्राचीन भारतीय साहित्य और समयकी मांगको है। अस्तु; ___ म० बुद्ध बौद्धधर्मके संस्थापक थे । उन्होने ईसवी सनसे 'पहले छठी शताब्दिमें एक समयानुकूल धर्मका बीजारोपण किया था और उसे वे अपने ही जीवन में पल्लवित कर सके थे । उस समयके प्रचलित मत-मतान्तरोमें परस्पर ऐक्य लानेका उद्देश्य ही इस नवीन धर्मकी स्थापनामें था। इन सब बातोका स्पष्ट दिग्दर्शन 'प्रस्तुत पुस्तकमें यथास्थान पाठकोंको मिलेगा। किन्ही महाशयोंकी आज भी यह मिथ्या धारणा बनी हुई है कि म० बुद्धके इस नवस्थापित बौद्धधर्मसे ही जैनकर्मका विकाश हुआ था; परन्तु इस पुस्तकके पढ़नेसे वे जान सकेंगे कि वस्तुतः जैनधर्म बौद्धधर्मसे प्राचीन है । भगवान महावीरके पहलेसे ही जैनधर्म चला आ रहा था। उनके एक बहुत ही दीर्घकाल पहले २३ तीर्थकर और हो चुके थे, जिनमें से २३वें श्रीपार्श्वनाथजी भगवान महावीरसे केवल १५० वर्ष पहले हुये थे । इस युगके सर्व प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव थे; जिनका उल्लेख हिन्दुओके भागवतमें (अ० ५) आठवें अवतार रूपमें हुआ है । वेदोमें चारवें वामन अवतारका उल्लेख है । इस अपेक्षा जैनधर्मके इस युगके संस्थापक भगवान ऋषभदेव वेदोंसे भी पहले हुये प्रमाणित होते हैं । यही कारण है. कि आधुनिक विद्वान् अपने अध्ययनके उपरान्त इस निर्णयको
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy